वामनपुराण हिंदी अनुवाद सहित | Vamana Purana Hindi Anuvad Sahit

Vamana Purana Hindi Anuvad Sahit by श्री गोपाल चन्द्र - Shri Gopal Chandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[प ७० वर्ष तक बनारस में रहकर अनेक संरकत प्रन्थों का ( देवी माहात्य का भी ) शरीक भाषा में अनुवाद किया 1 आस्ट्िया के एक ईसाई पादरी क्रा पाओडिनो (४७ 23010) ने भारतीय सस्कतवाब्नय का यूरोप में सपसे पढ़ढे खद्घाटन किया, वह मटावार तट पर. १७७६ से १७८९. ई० त्तक रहा जोर उसने अपने ग्रन्थ (8]ु४0808 डा 501000:) के द्वारा यूरोप को मारत के ब्राह्मण धर्म के साहित्य से परिचित कराया | यूरोप में सस्टत का पढले पहल प्रवेश एक अपेजी पिद्वान्‌ एठेक्जैण्डर दैमिस्टन (5 6श3एपेड संदिप्यधपण ) के द्वारा किया गया । उसने विलियम जॉन्स तथा कॉलजूक के समान ही वारेन हेसिंग के समय में भारत में सश्इत का अध्ययन किया तथा १८०२ ई० में कास में होता हुआ यूरोप ढौटा, परन्तु उस समय इगलेंड तथा फाप् के बीच युद्ध जारम हो गया गौर हैपिल्टन को बीच में ही पेरिंस में रोक लिया गया ।. तभी जर्मन विद्वान, फैडरिक इसैगढ (एघहतेएण सि०्छान्द्न) भी १८०७ तक रहने के लिए पेरिस भाया हुआ था. इटैगल ने हैमिल्टन से परिचय किया तथा उससे सस्कत का भध्ययन किया । इलैगठ ने ही बर्मनी में भारतीय भाषा-विज्ञान की नींव डाली । उसके अन्थ में, लो १८०८ ईं० में प्रकाशित हुआ, रामायण, मनुस्मति्‌, भगवदूगीता और महाभारत के शाकुम्तरोपाख्यान के कुछ जशों का जर्मन में जनुवाद भी दिया हुआ था ओर ये सस्कत के मूख ग्रम्यों से जर्मन भाषा में किए हुये प्रथम भनुवाद थे ।. इठैगठ के इस जर्मन अ्रस्थ ने जर्मन विद्वानों के हृदयों में सस्कत के अध्ययन के लिए जर भी अधिक उत्साद तथा मेरणा जागरित करने का श्रेय माप्त किया परन्तु यूरोप में संस्कृत सादित्य के इस प्रचार में सैन्ट पीट्स वर्ग में प्रकाशित सर्कृत जर्मन कोश ने जिसका सम्पादन बाथलिंक (006० छि०५ह 0 तथा रॉथ (०6०09 ००) ने किया था जौर जो सात भागों मैं १८५७ १८७५ ई० में प्रकाशित हुआ, बहुत अधिक सहायता प्रदान की । १८३० दे० तक तो यूरोप में वेदों से भिन्न अन्य सस्कृत सादिस्य का ही विशेषरूप से अध्ययन तथा जनुसधान हुआ ।. उस सपय तक +चेदों की ओर विद्वानों का विशेष 'ध्यान नहीं गया था। ययपि कॉलन्ुक (व ए एगढण०णछ ने १८०५ में अपने वेद परिचयात्मक निवन्थ (05 ६४० ए०68) में यूरोप को वेदों का प्रथम बार परिचय दिया था। सह्कृत का यह अध्ययन तुर्नात्मक भाषा-विज्ञान से संबद्ध था, जिसकी नींव जर्मन विद्वान क्ैँज बाप्प (ए१5४५ छणाफ) ने १८१६ में प्रकाशित अपने प्रन्थ ए०छणद७ 9008 80807 के द्वारा डाली थी । परन्तु वेदों का भाषाविज्ञानात्मक दृष्टि से अध्ययन एवं अनुसघान १८३८ से आरंभ हुआ लव औैररिक रोजन (धहह्तहचलो, 10860) ने कवेद के मथम भटक का लदून से मकाशन किया परन्तु वेदों के अध्ययन की वास्तविक नींव फैश् विद्वान यू ब्ेफ (छिए 608 छिपश्ण0प ने डाढी, उसके दो शिप्य रुडॉटफ रॉथ तथा मैक्समुलर वेदों के प्रसिद्ध विद्यान्‌ हुए । रॉध ने वेदों के साहित्य तथा इतिहास का परिचय १८४६ ई० में प्रकाशित 'पने अस्थ में दिया । और सैक्समूलर ने सायण भाष्य सदित कऋषेद के सम्पूर्ण प्रन्य का रद ४९-१८७७ ई० में मफाशन किया।. तभी से यूरोप के अनेक विद्वान्‌ वेदों के अध्ययन में जुद गये।. और फरर्दरूप यूरोप में चारों वेदों की संदिताओं के अनेक सपूर्ण अतुवाद, अनुवाद सहित उनके नेक संकलन तथा वेदों के ब्यास्यात्सह्ष जनेक अध्ययन प्रकाशित हुये है । बेद सहिताओं के अनुवादों में वि्सन (8: एाइ ०9) द्वारा किया हुआ फवेद का जयरेजी अनुवाद (नो रर इस सूचना के लिये मैं दाशिंगटन (झमेरिका) का कौव लिक यूनिवसिंटी के ध्राध्यापक डा० सीगूफीड शुल्टज का लाभारी हूं (निर्देश--उनदा ७ अंक्टवर १६६४ का पत्र)




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