भक्तियोग - साधन | Bhaktiyog - Sadhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द भक्तियोग-साधन 'मेरे तो गिरघर गोपाल, दसरो न कोई ।' हरि-प्रेम में दीवानी मीरा को क्या कोई पूरी तरह से समभ सकता हैं ! सम्पत्ति की श्रभिलापा से, पुत्र की कामना से, दुःख-निवत्ति या रोग-मुक्ति के हेतु से ईदवर की भक्ति करना सकाम्या भक्ति है । सकाम भक्ति क्रमश: निष्काम भक्ति में वदलती है । प्रह्लाद तो प्रारम्भ से ही निप्काम भक्ति करता था । प्र वकमार कंबल सकाम भक्ति करता था । प्रारम्भ में श्रपनी माता के कहें अ्रनुसार राज्य हस्तगत करने की कामना से वह वन में गया, लेकिन हरि-दर्शन हो जाने के वाद उसकी भक्ति निष्काम बन गयी । उसकी सारी कामनाएँ नष्ट हो गयीं । कुछ समय के लिए ईश्वर से प्रेम करना श्रौर कुछ समय के लिए पत्नी, पुत्र, घन-सम्पदा से प्रेम करना व्यभिचारिणी भक्ति है। ध्यान रहे कि सदा-सदा के लिए एकमात्र ईदवर से प्रेम अ्रव्यभिचारिणी भक्ति है। . सात्विक भक्ति में भ्रक्त के म्रन्दर सत्वगुण की प्रधानता होती है। वह ईरवर को प्रसत्त करने के लिए, ग्रपनी वास नामों को समाप्त करने के लिए तथा. इसी प्रकार के ग्रस्य सदुद्देदयों के लिए ईश्वर की उपासना करता है । ये तीनों प्रकार की भक्तियाँ गौण भक्ति हैं । राजस भक्ति में भक्त के श्रत्दर रजोगुण की प्रवलता होती है। भक्त सम्पत्ति, घन, नाम श्र कीत्ति के लिए ईश्वर की भक्ति करता है । था तामस-भक्ति.में तमोगुण प्रवल होता हैं। भक्त में दी दे, श्रहमाव, झसूया। क्रोध, आदि गुण होते हैं। श्रपने शत्रु का संहार करने के लिए और, भ्रविदित मागे से किसी की -




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