बालक अंक | Baalak Ank

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क वालकोंकी सब्ठी उन्नतिका उपाय क हु करणके नामपर सरकारीकरणः दढछीकरण या हिटलरीकरणकी दुव्य॑वस्था भी नहीं होती और न साम्राज्यवादके नामपर समष्टि-जीवनके साथ खिलवाड़ ही किया जा सकता है। सम्पत्ति एवं दयक्तिका विकेन्द्रीकरण ही आर्थिक असन्तुलनके निराकरणका प्रशस्त मार्ग है। अतिसमता और अतिथविषमता-- दोनों ही राष्ट्रके लिये घातक हैं । योग्यता; आवश्यकताकों ध्यानमें रखते हुए “चींदीको कणभर: हाथीको मनभर”की व्यवस्था ही व्यावहारिक है । रामराज्यसे ही बालकोंका सुधार और उनकी समुन्नति हो सकती है; और बालकोंके सुधार तथा समुन्नतिसे ही रामराज्य हो सकता है | वर्तमान शासननीतिके अनुसार जो शिक्षा तथा साहित्य प्रचछित हैं; विज्ञापनों-सिनेमाओंकी जो अवस्था है; उसमें बालकोंका सुधार तथा उत्थान कभी हो ही नहीं सकता । गोवध चलते रहनेके कारण हमारा देश- का ही अथुद्ध हो रहा है । छुद्ध घृतः दूध-दधिके अमावमें न कोई संस्कार हो सकते हैं और न यश-यागादि ही । झुद्ध संतानोत्पत्तिकि अनुगुण विशिष्ट विधियों भी पूरी नहीं हो सकतीं । कोटोजम; कोकोजमः डालडा; वनस्पति मिट्क- पाउडर आदिके द्वारा बुद्धि; मस्तिष्क तथा स्वास्थ्य नष्ट होते जा रहे हैं । धर्मह्दीन राज्यकी कव्पनासे चारित्रिक स्तर गिर रहा है। चोरबाजारीः धूसखोरी बढ़ती जा रही है। अन्न- वस्रका संकट और भुखमरी सर्वत्र व्याप्त हैं । महामारी) अतिदृष्टि: अनाइष्ि; शलमः मूष्क॑ आदि ईतिः भीति--सब् कुशासनके ही परिणामसे होती है । इनका अन्त सुशासनसे ही सम्मव है। हिंदूकोड; 'विदोष विवाह आदि कानून बन जानेपर न केवल हिंदुओंमें ही किंतु हिंदू, मुसलमान) ईसाई--सभीमें परस्पर विवाह; तलाक आदि चल पढ़ेंगे। दुराव्वारः व्यमिचवार आदि भी काचूनद्दारा वैध हो जाएँगे । ब्राह्मविवाह) पातित्रत धर्म आदि समाप्तप्राय हो जायँगे; फिर योग्य संतानोंकी उत्पत्ति ही केसे सम्भव होगी । इसीलिये “रामराज्य परिषद्*का आन्दोलन है कि “देशमें गो-हत्या बंद हो? धमंविरोधी दिंदूकोड; विशेष विवाद आदि काचून रद्द हों । ईमानदारीका विस्तार हो । चारित्रिक स्तर ऊँचा हो; शाख््रानुसार कर्म-कछाप बढ़े) देवी बल बड़े | संक्ेपमें) धर्मराज्य--रामराज्य स्थापित हो। तभी देश बलवान विद्वान» घनवान्‌: संघटित; खधर्मनिष्ट ईश्वरपरायण तथा अखण्ड बनेगा । तभी अनिष्ट वस्तुऑपर प्रतिबन्ध और अमीष्ट वस्तुओंका विस्तार हो सकेगा । अत! “रामराज्य- परिषदू*का सहयोग करके रामराज्यके छिये प्रयत्न ही पूर्ण रूपसे बालकोंके उत्थानका मार्ग है | चंकी नि नाजकोंकी सची उन्नतिका उपाय ( ठेखक--अनन्तश्री स्वामीजी श्रीक्ृष्णवोषाश्रमजी महाराज ) करारविन्देन पदारविन्द मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्‌ । वटस्य.. फ्त्रस्य.. पुटे.. दायानं बालं.. मुकुन्दं मनसा स्मरासि ॥ परमात्माकी सुष्टिमें देव और आसुर भावकों प्राप्त--दो प्रकारके जीव मिलते हैं । उसे. प्राजापत्या देवाश्चासुराश्रेति । ते पस्पर्थिरे दैत्या ज्यायांसो देवाश्व महीयन्त । इस देव और आसुर सष्टिमं अनादि कालसे द्ष-भावना+ स्पर्घ अछुण्ण चली आ रही है. । दैत्योंकी विजय और देवताओंकी हार बहुत बार होती देखी गयी है । सत्वप्रधान जीव देव और तमःप्रधान जीव, असुर माने जाते हैं । गीतामें लिखा है-- भय स्वसंरुद्धिशीनयोगब्यवस्थितिः । दान॑ दमश्र यज्ञश्न॒ स्वाध्यायस्तप आजंवस्‌ ॥ अहिंसा. सत्यमक्रोधस्स्यायः शान्तिस्पैशुनमू । दया. भूतेष्वलोछुप्त्व॑ मादँवं. ीरचापलम, ॥ तेजः क्षमा छतिः शोचमद्रोहो नातिमानिता । भवन्ति सम्पद॑ देवीमसिजातस्प भारत पे हरे १-३) अर्थात्‌ देवी सम्पत्तिमें उत्पन्न होनेवाले प्राणियोंमिं अभय) सत्त्व-संझुद्धि: दान» योग; ज्ञान: दस; यश: स्वाध्याय, तप; सरलता» अद्िंताः सत्यः अक्रोध) त्याग; शान्ति; पिझुनताका अभाव प्राणियोंके प्रति दया» सदुता; लजा? अपाप्य; तेज; क्षमा: धरृति; सोच: अद्रोहः अभमिमानामाव आदि स्वमावसे रहते हैं । इसके विपरीत आसुरी सष्टिवाले जीवोंमें--- प्रवृति च तिवृति च जना न विदुरासुरा: । लत झशोचं लापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते ॥ (गीता १६७३ प्रदूत्ति और निद्दत्तिका तात्विक शान न होना; शौच -




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