बालक अंक | Baalak Ank
श्रेणी : हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
56.35 MB
कुल पष्ठ :
774
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क वालकोंकी सब्ठी उन्नतिका उपाय क हु
करणके नामपर सरकारीकरणः दढछीकरण या हिटलरीकरणकी
दुव्य॑वस्था भी नहीं होती और न साम्राज्यवादके नामपर
समष्टि-जीवनके साथ खिलवाड़ ही किया जा सकता है।
सम्पत्ति एवं दयक्तिका विकेन्द्रीकरण ही आर्थिक असन्तुलनके
निराकरणका प्रशस्त मार्ग है। अतिसमता और अतिथविषमता--
दोनों ही राष्ट्रके लिये घातक हैं । योग्यता; आवश्यकताकों
ध्यानमें रखते हुए “चींदीको कणभर: हाथीको मनभर”की
व्यवस्था ही व्यावहारिक है ।
रामराज्यसे ही बालकोंका सुधार और उनकी समुन्नति
हो सकती है; और बालकोंके सुधार तथा समुन्नतिसे ही
रामराज्य हो सकता है | वर्तमान शासननीतिके अनुसार जो
शिक्षा तथा साहित्य प्रचछित हैं; विज्ञापनों-सिनेमाओंकी जो
अवस्था है; उसमें बालकोंका सुधार तथा उत्थान कभी हो
ही नहीं सकता । गोवध चलते रहनेके कारण हमारा देश-
का ही अथुद्ध हो रहा है । छुद्ध घृतः दूध-दधिके अमावमें
न कोई संस्कार हो सकते हैं और न यश-यागादि ही । झुद्ध
संतानोत्पत्तिकि अनुगुण विशिष्ट विधियों भी पूरी नहीं हो
सकतीं । कोटोजम; कोकोजमः डालडा; वनस्पति मिट्क-
पाउडर आदिके द्वारा बुद्धि; मस्तिष्क तथा स्वास्थ्य नष्ट
होते जा रहे हैं । धर्मह्दीन राज्यकी कव्पनासे चारित्रिक स्तर
गिर रहा है। चोरबाजारीः धूसखोरी बढ़ती जा रही है। अन्न-
वस्रका संकट और भुखमरी सर्वत्र व्याप्त हैं । महामारी)
अतिदृष्टि: अनाइष्ि; शलमः मूष्क॑ आदि ईतिः भीति--सब्
कुशासनके ही परिणामसे होती है । इनका अन्त सुशासनसे
ही सम्मव है। हिंदूकोड; 'विदोष विवाह आदि कानून बन
जानेपर न केवल हिंदुओंमें ही किंतु हिंदू, मुसलमान)
ईसाई--सभीमें परस्पर विवाह; तलाक आदि चल पढ़ेंगे।
दुराव्वारः व्यमिचवार आदि भी काचूनद्दारा वैध हो जाएँगे ।
ब्राह्मविवाह) पातित्रत धर्म आदि समाप्तप्राय हो जायँगे;
फिर योग्य संतानोंकी उत्पत्ति ही केसे सम्भव होगी ।
इसीलिये “रामराज्य परिषद्*का आन्दोलन है कि “देशमें
गो-हत्या बंद हो? धमंविरोधी दिंदूकोड; विशेष विवाद
आदि काचून रद्द हों । ईमानदारीका विस्तार हो । चारित्रिक
स्तर ऊँचा हो; शाख््रानुसार कर्म-कछाप बढ़े) देवी बल बड़े |
संक्ेपमें) धर्मराज्य--रामराज्य स्थापित हो। तभी देश बलवान
विद्वान» घनवान्: संघटित; खधर्मनिष्ट ईश्वरपरायण तथा
अखण्ड बनेगा । तभी अनिष्ट वस्तुऑपर प्रतिबन्ध और
अमीष्ट वस्तुओंका विस्तार हो सकेगा । अत! “रामराज्य-
परिषदू*का सहयोग करके रामराज्यके छिये प्रयत्न ही पूर्ण
रूपसे बालकोंके उत्थानका मार्ग है |
चंकी नि
नाजकोंकी सची उन्नतिका उपाय
( ठेखक--अनन्तश्री स्वामीजी श्रीक्ृष्णवोषाश्रमजी महाराज )
करारविन्देन पदारविन्द
मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् ।
वटस्य.. फ्त्रस्य.. पुटे.. दायानं
बालं.. मुकुन्दं मनसा स्मरासि ॥
परमात्माकी सुष्टिमें देव और आसुर भावकों प्राप्त--दो
प्रकारके जीव मिलते हैं ।
उसे. प्राजापत्या देवाश्चासुराश्रेति । ते पस्पर्थिरे
दैत्या ज्यायांसो देवाश्व महीयन्त ।
इस देव और आसुर सष्टिमं अनादि कालसे द्ष-भावना+
स्पर्घ अछुण्ण चली आ रही है. । दैत्योंकी विजय और
देवताओंकी हार बहुत बार होती देखी गयी है । सत्वप्रधान
जीव देव और तमःप्रधान जीव, असुर माने जाते हैं ।
गीतामें लिखा है--
भय स्वसंरुद्धिशीनयोगब्यवस्थितिः ।
दान॑ दमश्र यज्ञश्न॒ स्वाध्यायस्तप आजंवस् ॥
अहिंसा. सत्यमक्रोधस्स्यायः शान्तिस्पैशुनमू ।
दया. भूतेष्वलोछुप्त्व॑ मादँवं. ीरचापलम, ॥
तेजः क्षमा छतिः शोचमद्रोहो नातिमानिता ।
भवन्ति सम्पद॑ देवीमसिजातस्प भारत पे
हरे १-३)
अर्थात् देवी सम्पत्तिमें उत्पन्न होनेवाले प्राणियोंमिं अभय)
सत्त्व-संझुद्धि: दान» योग; ज्ञान: दस; यश: स्वाध्याय, तप;
सरलता» अद्िंताः सत्यः अक्रोध) त्याग; शान्ति; पिझुनताका
अभाव प्राणियोंके प्रति दया» सदुता; लजा? अपाप्य; तेज;
क्षमा: धरृति; सोच: अद्रोहः अभमिमानामाव आदि
स्वमावसे रहते हैं । इसके विपरीत आसुरी सष्टिवाले जीवोंमें---
प्रवृति च तिवृति च जना न विदुरासुरा: ।
लत झशोचं लापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते ॥
(गीता १६७३
प्रदूत्ति और निद्दत्तिका तात्विक शान न होना; शौच -
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