अवतार कथांक | Avtar Kathaank

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लि नल्नाललिरखा उन ग[द्ध पवार कनाडा जद आय अर ला टपलर ' 'अवताएकधाड.''. |, अवतार कथाडू ! अवतार-कं न सर अवत्तार-कथाड्ट' ' अवतार-क' ' अवतार-कथाड़ ' ' अवतार-क! “ अललार-- उन ब खतार- नए: के जे गा र -कथाड़ पे अवतार-कष ् के अवतार-क्यधे पूवत्तार --कशाड ' उकथाड्ड पर -कथाड़ू' * अवतार-कथाड़ू नवितार-कथाड़ ' ' अवतार-कथाड्ू पर्व -कथाड़ू 1 अवतार-कथाडू श पक 1 भवतार-कथाड्ू ' * अवतार-कथाडू अवतार-कथाड़ू' * अवतार-कथाड दे माड़लिक स्तवन नमस्ते गणपतये । त्वमेव प्रत्यक्ष तत्वमसि । त्वमेव ड कर्तासि। त्वपेव केवल धर्तासि । त्वमेव केवल हर्तासि। त्वमेव सर्व खल्विदं ब्रह्मासि। त्व॑ साक्षादात्मासि नित्यम्‌ ॥ गणपतिकों नमस्कार है, तुम्हीं प्रत्यक्ष तत्त्व हो, तुम्हीं केवल कर्ता, तुम्हीं केवल धारणकर्ता और तुम्हीं केवल संहारकर्ता हो, तुम्हीं केवल समस्त विश्वरूप ब्रह्म हो और तुम्हीं साक्षात्‌ नित्य आत्मा हो । ( श्रीगणपत्यथर्वशीर्ष) नमो व्वातपतये नमो गणपतये नम: प्रमथपतये नमस्तेडस्तु लम्बोदरायैकदन्ताय विध्ननाशिने शिवसुताय श्रीवरदमूर्तये नम: ॥ व्रातपतिको नमस्कार, गणपतिको नमस्कार, प्रमथपतिको नमस्कार, लम्बोदर, एकदन्त, विध्ननाशक, शिवतनय श्रीवरदमूर्तिको नमस्कार है । ( श्रीगणपत्यथर्वशीर्ष) विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव। यद्‌ भद्रं तन्न आ सुव ॥ समस्त संसारको उत्पन्न करनेवाले-सृष्टि-पालन-संहार करनेवाले किंवा विश्वमें सर्वाधिक देदीप्यमान णवं जगतूको शुभकर्मोंमें प्रवृत्त करनेवाले हे परब्रह्मस्वरूप सविता देव ! आप हमारे सम्पूर्-आधिभौतिक, आधिदैविक, आध्यात्मिक--दुरितों (बुराइयों--पापों )-को हमसे दूर--बहुत दूर ले जायेँ, दूर करें; किंतु जो भद्र ( भला) है, कल्याण है, श्रेय है, मज़ल है, उसे हमारे लिये-विश्वके हम सभी प्राणियोंके लिये-चारों ओरसे (भलीभाँतिं) ले आयें, दें । (ऋग्वेद ५ । ८२५) इरद विष्णुर्वि चक्रमे त्रेधा नि दधे पदम्‌। समूढमस्य पारसुरे स्वाहा ॥ सर्वव्यापी परमात्मा विष्णुने इस जगतूको धारण किया है और वे ही पहले भूमि, दूसरे अन्तरिक्ष और तीसरे दुलोकमें तीन पदोंको स्थापित करते हैं अर्थात्‌ सर्वत्र व्याप्त हैं । इन विष्णुदेवमें ही समस्त विश्व व्याप्त है । हम उनके निमित्त हवि प्रदान करते हैं । (यजुर्वेद ५। १५) नम: शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शड्भराय च मयस्कराय कल्याण एवं सुखके मूल स्रोत भगवान्‌ शिवको नमस्कार है। कल्याणके विस्तार करनेवाले भगवान्‌ शिवकों नमस्कार है। मज़लस्वरूप और मज़लमयताकी है। (यजुर्वेद १६। ४१) यो प्रात:सूर्यसमप्रभामू । पाशाडुशधरां सौम्यां वरदाभयहस्तकाम्‌। त्रिनेत्रां रक्तबसनां भक्तकामदुघां भजे॥ नमामि त्वां महादेवीं महाभयविनाशिनीम्‌ । महादुर्गप्रशमनीं महाकारुण्यरूपिणीम्‌॥ हि हृत्कमलके मध्य रहनेवाली, प्रात: कालीन सूर्यके समान प्रभावाली, पाश और अंकुश धारण करेगा का हर रूपधारिणी, वर और अभयमुद्रा धारण किये हुए हाथोंवाली, तीन नेत्रोंसे युक्त, रक्तवस्त्र परिधान करनेवाली और में रँ करनेवाली, महासंकटकों कामधेनुके समान भक्तोंकि मनोरथ पूर्ण करनेवाली देवीको में भजता हूं! महाभयकां नाश व पणीरप ) शान्त करनेवाली और महान्‌ करुणाकी साक्षात्‌ मूर्ति तुम महादेवीको मैं नमस्कार करता हूं । ( श्रीदेव्य #्ज#्य्ा ( #लन स्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च॥ विस्तार करनेवाले तथा सुखके सीमा भगवान्‌ शिवको नमस्कार




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