भागवत दर्शन खंड 76 | Bhagwat Darshan Khand 76

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Bhagwat Darshan Khand 76 by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रै० वाहन द्वारा हम उस दिन वृन्दावन नहीं पहुँच सकते थे ! जब किसी भी प्रकार सरकारों भ्रघिवक्ता घपनी बात को दो दिन के पूर्व प्रयत से सिद्ध कहने में समय न हुए, तो दूसरे दिन सापकान, में उन्द्रीने प्रात्तीय सरकार की सम्मति दो, इध झभि- योग को तुरन्त लोटा लो, ग्रह्मदारी जी को तुरन्त छोड दो 1” मुक्त दोनो झोर के वाद विवाद मे बड़ा भानन्द श्रा रहा था । ऐसा मब्य नाटक मैंने जोवन हिले पहिल देखा था । न्यायाधीशों को वह गम्मोर मुद्दा, तथा भधिवक्तापो की जो हास्परव से सपुटित एक दूसरे को चिडाने वाली युक्तियाँ उस गम्मीर वातावर्श में भो सरयता बिलेर रही थी । में गोरक्षा झमियान समिति का सध्यक्ष था हमारे १० लाख के जुलूस पर सरवार को भोर से गालियाँ चलायी गयो थीं बहुत से झादमी मारे गय ! स्सी प्रसंग में हमारे वकील खरे साहब न बहा-- यह सब काम गुडो का या ।” न्पापाघोश ने कहा--'गुडा गा वाम ? तब उन लोगों को शुडा प्रचिनियम के भ्नुसार पडा वयो सही गया?” खर साहथ ने बनावटो गम्भीरता के स्वर में करा- *श्रोमानु ! वे पकड़े केसे जाते । वे साघारण गुन्डे नहीं थे । याप्रेसो गुन्डे थे ।'” *बाप्रेसी गुन्डे ' शब्द वो सुनते ही दहाँ उपस्थित सभी वी पे दशक ठठावा मारकर हँस पड़े । न्यायाधीश मी भ्पनी हँसी को न रोक सके । न हंसने वालों में हमारे सरकारी मदाधिफ्ा मिश्र जीही एकये। में प्राइवय बर रहा था, कि ये वकोल सोग इतने बड़े न्याया- लय में भो ऐपी कड़ो-कड़ी बातें केसे वह जाते हैं भौर इन पर कुछ प्रमियोग सो नहीं लगाया जाना |




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