भागवत दर्शन खंड 76 | Bhagwat Darshan Khand 76
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.21 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रै०
वाहन द्वारा हम उस दिन वृन्दावन नहीं पहुँच सकते थे !
जब किसी भी प्रकार सरकारों भ्रघिवक्ता घपनी बात को दो
दिन के पूर्व प्रयत से सिद्ध कहने में समय न हुए, तो दूसरे दिन
सापकान, में उन्द्रीने प्रात्तीय सरकार की सम्मति दो, इध झभि-
योग को तुरन्त लोटा लो, ग्रह्मदारी जी को तुरन्त छोड दो 1”
मुक्त दोनो झोर के वाद विवाद मे बड़ा भानन्द श्रा रहा
था । ऐसा मब्य नाटक मैंने जोवन हिले पहिल देखा था ।
न्यायाधीशों को वह गम्मोर मुद्दा, तथा भधिवक्तापो की जो
हास्परव से सपुटित एक दूसरे को चिडाने वाली युक्तियाँ उस
गम्मीर वातावर्श में भो सरयता बिलेर रही थी ।
में गोरक्षा झमियान समिति का सध्यक्ष था हमारे १० लाख
के जुलूस पर सरवार को भोर से गालियाँ चलायी गयो थीं
बहुत से झादमी मारे गय ! स्सी प्रसंग में हमारे वकील खरे
साहब न बहा-- यह सब काम गुडो का या ।”
न्पापाघोश ने कहा--'गुडा गा वाम ? तब उन लोगों को
शुडा प्रचिनियम के भ्नुसार पडा वयो सही गया?”
खर साहथ ने बनावटो गम्भीरता के स्वर में करा-
*श्रोमानु ! वे पकड़े केसे जाते । वे साघारण गुन्डे नहीं थे ।
याप्रेसो गुन्डे थे ।'”
*बाप्रेसी गुन्डे ' शब्द वो सुनते ही दहाँ उपस्थित सभी वी पे
दशक ठठावा मारकर हँस पड़े । न्यायाधीश मी भ्पनी हँसी को
न रोक सके । न हंसने वालों में हमारे सरकारी मदाधिफ्ा मिश्र
जीही एकये।
में प्राइवय बर रहा था, कि ये वकोल सोग इतने बड़े न्याया-
लय में भो ऐपी कड़ो-कड़ी बातें केसे वह जाते हैं भौर इन पर
कुछ प्रमियोग सो नहीं लगाया जाना |
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