नूतन सुखसागर | Nutan Sukhsagar

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Nutan Sukhsagar by रणछोड़ दास अग्रवाल - Ranchordas Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झरष्याय २ के श्रीमद्वागवत माहात्म्य के रंगी । हे साधु आप दयाजु ने मेरी बाधा तो क्षणमात्र में हर ली परन्तु इन ज्ञान वेराग्य नामक पुत्रों को चेत नहीं हुआ सो इन्हें सचेत करो । श्री नारद मुनि उस भक्ति का यह वचन सुन उन दोनों ज्ञान और वेराग्य को अपने हाथ से सहारा देकर जगाने लगे जब इस रीति से वे न जागे तब कान के निकट मुख लगा कर नारदजी ने ऊ चे सर से पुकारा कि हे ज्ञान शीघ्र जागो और हे वैराग्य शीघ्र जागो । इस प्रकार पुकारने से उन्होंने जब नेत्र न खोले तब नारदजी ने वेद वेदान्त के शब्द सुनाय बारभ्बार जगाया तब वे दोनों बलपूर्वक महा कठिनता से उठे। किन्तु बहुत निर्बल होने के कारण फिर गिर पढ़े उनकी यह दशा देखकर नारदजी को महा चिन्ता उत्पन्न हुई और वह गोविन्द भगवान का स्मरण करने लगे । भगवान का स्परण करते ही आकाश वाणी हुई कि हे तपोधन खेद मत करो तुम्हारा उद्यम सफल होगा निभित्ततुम सक्क्म का आरम्भ करो और वह सकर्म तुमसे महात्मा लोग वर्णन करेंगे । सत्कर्म करने मात्र से ही इन दोनों की निद्रा सहित बृद्धता जाती रहेगी । इस वाणी को सुनकर नारद जी विस्मित होकर विचार करने लगे कि महात्मा साधुजन कहां मिलेंगे और साधन किस प्रकार देंगे । सूतजी बोले कि नारदमुनि इती सोच विचार में उन दोनों को दहीं छोड़कर महात्मा साधुओं को खोजने को चल दिये और प्रत्येक तीथों में जाकर मार्ग में मुनोश्वरों से पूछने लगे । नारदजी के वृत्तांत को सबने सुना परन्तु किसी ने निश्चय करके ठीक उत्तर नहीं दिया । तब नारदजी चिन्तातुर होकर बदरी बन में आाये आर यह निश्चय किया कि यहां तप करूँगा इतने में कोटि सूर्य के समान तेजवाले सनक आदि मुनियों को अपने सन्मुख खड़े देखकर नारदजी बोले कि हे मुनीश्वरों इस समय बड़े भाग्य से झापका समागम हुआ । झाप सब प्रकार जुद्धिमान और शाख्रवेत्ताओर योगिराज हो और सबसेपहिले उत्पन्न होनेपर भी सदा पांच वर्ष के ही बने रहे हो । झाप सदा वैकुगठ में रह कर हरि भगवान के गुणानुवाद गाते रहे हो और भगवत्‌ लीलारूपी अमृत रस से मत्त होकर केवल एक कथा माव से दी जीते हो और हरि शरणभ्‌ ऐसा




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