मानसरोवर भाग -६ | Mansarovar Bhag-6

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Mansarovar Bhag-6 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कमा २० मानसरोवर कोई पारावार न था पर राजा के तोवर देख कर उसके प्राण सूख गये । जद राजा जय गये और उसने थाल वो देवा तो कलेजा घकु से हो गया और पेरो तले से मिट्टी निगल गयी । उसने सिर पीट छिया-- स्वर आज रात कुशलतापूर्वक बडे मु्ते घडुन अच्छे दिखायों नहीं देते । राजा जुझारमसिंत कोटा महल में लेटे । चतुर नाइन ने रानी का श्यूगार किया और वह मुस्करा कर बोलो--कछ महाराज से इसका इनाम हूँ । यह कह कर बह चलो गयी परतु कुठोना वहाँ से न उठी । बह गहरें सोच में पड़ी हुई थी । उनके सामने कौन-सा मुंदू ऐे कर जाऊं ? नाइन ने नाटक मेरा श्यूंगार कर दिया | मेरा श्गगार देख कर दे खुद भी होगे मुझसे इस समय अपराध हुआ हैं मैं अपराधिनी हूँ मेरा उनके पास इस समय बनाव-श्यूगार करके जाना उचित नहीं । नहीं नदी आज मुझे उनके पास भिसारिती के भेप में जाता चाहिए। मैं उनमें क्षनं मागूँगी । इस समय मेरे लिए यहीं उचित हैं। यट सोच कर रानी बड़े धीसे के सामने साड़ी हो गयी । वह अप्सरान्मी सादूम होती थी । सुंदरता थी नितर्न ही तसवीरें उसने देखो थो पर उसे इस समय दीदो की तसवीर सबसे उयाद खूदसूरत माठूम होती थी । सुदरना और आत्म का साथ हैँ । हल्दी बिना रग के नहीं रह सकतों 1 थोड़ी देर के लिए कुछीना सुदरता के मद ये फूड उठो । बह तन कर सदी हो गयी । लोग बहनें है कि सुदरता में जादू है आर बढ़ पाई जिगका कोई उतार नहीं । घर्म और कर्म तन और मन सब सुदरता पर न्पौछापर हैं । में सुइर न सही ऐनो बुरूपा भी नहीं हूँ । बचा मेरी युदरता में इनती भी छक्ति नहीं कि सहारान से मेरा अपराघ्र झमा करा सके ? ये बादू-लताएँ जिम समय सनके गे का हार होगी ये आँखें जिस गमय प्रेम के सद से लाल हो कर देखो तब कया मेरे सौदे वी घीललता उनकी फ्रोघास्ति वो ठंडा थे कर देगी ? पर थोड़ी देर में रागों को ज्ञान हुमा । आह यह में कया स्वप्न देप रही हैँ मेरे मन में ऐसी बातें क्यों याती हैं में अच्छी हू या दुरी हूं उनवी चरों हू 1 मुशरो जपराघ हुआ हैं मुझे उनमें झमा माँगनो चाहिए । चहू शयूंगार और थनाद इस ममप उपयुक्त नहीं हैं । यह सोच कर राती ने सब गढ़ने उतार दिये । इतर में यो हुई रेशम के सादी अलग कर दी । मोतियों से .भरी माँग




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