सिन्दूर की होली | Sindoor Ki Holi
श्रेणी : नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.05 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बरसात का दिन । प्राय एक पदर दिन चढ चुका है लेकिन घ्याकाश में घने वादल होने के कारण मालूम दो रहा है कि भी सवेरा हो रहा है। डिप्टी कलक्टर मुरारीलाल का वेंगला । बेंगले मे सामने की शओर एक वढ़ा कमरा है जिसमें झगरेजी ढंग के एक दूसरे से लगे हुये सामने की ओर चार दरवाजे हैं । दरवाजे सभी खुले हुये हैं और कमरे के वीच में एक बढ़ी मेज के चारों श्रोर लकड़ी को कुर्सियाँ रक्खी हैं । मेज पर एक अगरेजी श्रखवार एक तश्चतरी में पान इलायची श्औौर उसके पास ही गोल्ड फ्लेक सिगरेट का डिव्बवा और दियासलाई पढ़ी है । दूसरी ओर की दौवाल मे दो श्आलमारियों हैं. जिनमें मोटी मोटी पुरानी कितानें रक्खी हैं किसी की जिल्द उखड गई है तो किसी जिल्द का कपड़ा सढ गया है श्रौर गन्दी दफती देख पढ़ती है। कमरे के सामने मेहरावदार गोसवारा है जिसके खम्भों का सीमेन्ट कहीं कहाँ उखड़ गया है और भट्दी ईरें देख पढ़ती हैं । गोसवारे में दौवाल के किनारे वॉस की दो कुर्सियोँ रक्खी हैं | ग्गेसवारे के दोनो ओर दो गोल कमरे हैं जिनके एक एक दरवाजे गोसवारे में हैं शरीर एक एक पीछे की ओर वड़े कमरे मे । वढे कमरे में वेंगले के भीतरी भाग में जाने का रास्ता है। मुरारीलाल का मुन्शी वाहर की श्र से कमरे मे प्रवेश करता है । मेज पर की चीजें इधर उधर करता है । झपने अेंगोछे से कुर्तियों को इधर उधर हटाकर साइता है घर फिर उन्हें ठीक जगह पर लगा रहा है । भीतर से सुरारीलाल का प्रवेश मुरारीलाल- कहाँ चले गये थे जी ? साढ़े नो दो रहा है।
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