सामवेद | Samved
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.91 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रु
है। वह मग्ति भक्तिमान, सावधान, मनुष्यों के द्वारा प्रतिदिन स्तुति
करने योग्य है ॥७11 ही
है आरिन ! तू दुःखदाबी प्राणियों, अध्राणियों को शीघ् नष्ट करने
चाला है । वे तुझको संग्रामो में नहीं जीत सकते ! अतः मांसभक्षक उन
सुष्टी को समूल भस्म कर । वे तेरे देवी वज् से न बचें ॥1८1॥1
नवमी दशति
हे मरोकगति वाले अग्नि ! बल, प्रकाशमान विद्या, धन हमें दो ।
हमें श्रेष्ठ अन्न और धन प्राप्त करने के लिए मार्ग का कर ॥ 11
यदि मनुष्य अखि को प्रदीप्त करे और निरन्तर हवन किया करे,
जो वीर हो जाय और दिव्य सुख भोगे ॥ २0 दि
हे पवित्र करने वाले मर्निदेव ! तेरा आकाश में फैला हुआ प्रकाश-
कारक घुआं मेघरूप में बदल जाता है'। निश्चय ही तू सूर्य-सा समर्थ
जक्काथक है ॥। रे न 2 ः
हे अग्नि ! सू पुथिवी के लिए ह्वितहारी जल क। बरसामे वाला है!
छ्टि के सहायक भर आठ वसुओं में से एक तू ही मित्र के समान कृषि
शा पुष्ट करता है 11४ । शक ि
सर्भी मरणधर्मा मनुष्य जिस अमर मृम्नि में हवन करते हैं, सबका
व््यार, झभीप्टदाता और गमनशील अन्नि स्तुति-योग्य है 11५11
ह है मतुप्य ! जो तेरा बड़े से बड़ा वहनशील द्रव्य है, उसे प्रकाशमान
छाम्नि में होम दे । ऐसा करने से तेरे बहुत साधन और बहुत-सा अनाज
'उपजेगा 1६1 १
परमेश्वर का वचन है कि हे अन्न की अभिलापा करने वाले
मनुष्यों ! पुम मनुष्यों के अत्यन्त हितकारी, निरन्तर गतिशील, सुख के
थाम, अग्नि की मैं मन्यरूपी वचनों से तुम्हारे जानने के लिए स्तुति
करता हूँ ॥॥७11
हे मनुष्य ! जिसे मित्र के समान मानकर सभी स्तुति के लिए
अग्रगण्य मानते हैं; उस प्रकाशमान देव अरिन के लिए तु बड़े-बड़े स्थाली-
पाक भादि अन्न चढ़ा 11८11
जो अग्नि सुयें तथा नक्षत्र समूह मे प्रकाश भर रहा है, उस मेघ-
विदारक, शत्रु-सहारक, मनुष्य हितकारक अग्नि को तुम जानो ॥€11:
जो अर्नि सु्ये का पिता (कारण) है, वहीं जब ऋत्विजों के साथ
यज्ञसे उत्पन्न होता हे; तब सत्य का धारक, मननशील, बुद्धिमान
अऋत्विज उसको जन्म देदे वाली माता के समान होता है ॥१०॥
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