सामवेद | Samved

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Samved by डॉ. राजबहादुर पाण्डेय - Dr. Rajbahadur Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रु है। वह मग्ति भक्तिमान, सावधान, मनुष्यों के द्वारा प्रतिदिन स्तुति करने योग्य है ॥७11 ही है आरिन ! तू दुःखदाबी प्राणियों, अध्राणियों को शीघ् नष्ट करने चाला है । वे तुझको संग्रामो में नहीं जीत सकते ! अतः मांसभक्षक उन सुष्टी को समूल भस्म कर । वे तेरे देवी वज् से न बचें ॥1८1॥1 नवमी दशति हे मरोकगति वाले अग्नि ! बल, प्रकाशमान विद्या, धन हमें दो । हमें श्रेष्ठ अन्न और धन प्राप्त करने के लिए मार्ग का कर ॥ 11 यदि मनुष्य अखि को प्रदीप्त करे और निरन्तर हवन किया करे, जो वीर हो जाय और दिव्य सुख भोगे ॥ २0 दि हे पवित्र करने वाले मर्निदेव ! तेरा आकाश में फैला हुआ प्रकाश- कारक घुआं मेघरूप में बदल जाता है'। निश्चय ही तू सूर्य-सा समर्थ जक्काथक है ॥। रे न 2 ः हे अग्नि ! सू पुथिवी के लिए ह्वितहारी जल क। बरसामे वाला है! छ्टि के सहायक भर आठ वसुओं में से एक तू ही मित्र के समान कृषि शा पुष्ट करता है 11४ । शक ि सर्भी मरणधर्मा मनुष्य जिस अमर मृम्नि में हवन करते हैं, सबका व््यार, झभीप्टदाता और गमनशील अन्नि स्तुति-योग्य है 11५11 ह है मतुप्य ! जो तेरा बड़े से बड़ा वहनशील द्रव्य है, उसे प्रकाशमान छाम्नि में होम दे । ऐसा करने से तेरे बहुत साधन और बहुत-सा अनाज 'उपजेगा 1६1 १ परमेश्वर का वचन है कि हे अन्न की अभिलापा करने वाले मनुष्यों ! पुम मनुष्यों के अत्यन्त हितकारी, निरन्तर गतिशील, सुख के थाम, अग्नि की मैं मन्यरूपी वचनों से तुम्हारे जानने के लिए स्तुति करता हूँ ॥॥७11 हे मनुष्य ! जिसे मित्र के समान मानकर सभी स्तुति के लिए अग्रगण्य मानते हैं; उस प्रकाशमान देव अरिन के लिए तु बड़े-बड़े स्थाली- पाक भादि अन्न चढ़ा 11८11 जो अग्नि सुयें तथा नक्षत्र समूह मे प्रकाश भर रहा है, उस मेघ- विदारक, शत्रु-सहारक, मनुष्य हितकारक अग्नि को तुम जानो ॥€11: जो अर्नि सु्ये का पिता (कारण) है, वहीं जब ऋत्विजों के साथ यज्ञसे उत्पन्न होता हे; तब सत्य का धारक, मननशील, बुद्धिमान अऋत्विज उसको जन्म देदे वाली माता के समान होता है ॥१०॥




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