कर्मयोग | Karmyog

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Karmyog  by स्वामी विवेकानन्द - Swami Vivekanand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand

Add Infomation AboutSwami Vivekanand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
कर्म का चरित्र पर प्रभाव ९ के लिए आजन्म काम करते रहते हैं कि मृत्यु के बाद उनकी एक वड़ी कब्न वने । में कुछ एंसे सम्प्रदायों को जानता हूँ, जिनमें बच्चे के पैदा होते ही उसके लिए एक कन्न बना दी जाती है, और यही उन लोगों के अनुसार मनुष्य का सब से जरूरी काम होता है । जिसकी कन्न जितनी बड़ी और सुन्दर होती है, वह उतना ही अधिक सुखी समझा जाता है । कुछ लोग प्रायशि्चित्त के रूप में कमं किया करते है, अर्थात्‌ अपने जीवन भर अनेक प्रकार के दुष्ट कर्म कर चुकने के बाद एक मन्दिर बनवा देते हैं अथवा पुरोहितों को कुछ धन दे देते हैं, जिससे कि वे उनके लिए मानों स्वर्गें का टिकट खरीद देंगे ! वे सोचते हैं कि वस इससे रास्ता साफ हो गया, अब हम निर्धिघ्न चले जायेंगे । इस प्रकार, मनुष्य को कार्ये में लगानेवाले बहुत से उद्देव्य रहते हैं, ये उनमें से कुछ हुए ।. अब कार्य के लिए ही का्य--इस सम्बन्ध में हम कुछ आलोचना करें । प्रत्येक देद में कुछ ऐसे नर-रत्न होते हैं, जो केवल कर्म के लिए ही कमे करते है । वे नाम-यश अधवा स्वर्ग की भी परवाह नहीं करते । वे केवल इसलिए कमं करते है कि उससे दूसरों की भलाई होती है । कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो और भी उच्चतर उद्देश्य लेकर गरीबों के प्रति भलाई तथा मनुष्य-जाति की सहायता करने के लिए अग्रसर होते हैं, क्योंकि भलाई में उनका विश्वास है और उसके प्रति प्रेम है । देखा जाता है कि नाम तथा यश के लिए किया गया कार्य बहुधा शीघ्र फलित नहीं होता । ये चीजें तो हमें उस समय प्राप्त होती हैं, जब हम वृद्ध हो जाते हैं और जिन्दगी की आखिरी घड़ियाँ गिनते रहते है । यदि कोई मनुष्य निःस्वाथंता से कार्य करे, तो क्या उसे




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now