बिल्हण के विक्रमनकदेवचारिता | Bilhana ke Vikramankadevacarita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १२ ) पडलोक 'विक्रामाइदेवचरित' मददाकाव्यसे भी अधिक उत्कुप्ट हैं। मशकविने--''दपंगर्म अपना प्रतिविम्ब देखती हुई विश्रव्ध नाधयिकाकी स्थिति दपंगं अपने प्रतिविस्व जे साथ चुपचाप पीछेपे सहसा भाये हुए नायकका प्रतिविस्व देखकर कैज्ी दो गयी है ?” इसका गे झाव्दचिन्रण विरदणने इस प्रकार किया है । यथा-- 1... “'अधघापि ता रदसि दपंणमोक्षमाणां संक्रान्तमत्प्रतिनिभं सयि पप्ठछीने 4 7... पश्यासि वेपधुमतीं च ससंज्रमां च लज्जाकुर्छा समदनां च सविश्वमां च ॥” : | ् चौ० पं० न ऐसे ही ममंस्पर्धा मावपूर्ण पथ नचौरपश्वाशिकामें सब्र मिरते हें । ।.... मद्दाकवि विल्दणने दाक्षिणात्य 'कल्याण'के चाछक्यवंशीय राजा विक्रमाइुदेव ( पछ्ठ ) ' को अपने मद्दाकाव्यका नायक माना है । इतिदासविदोंने चार चालस्यवंशोंका उल्लेख ! किया दै, यथा--(१) वातापि 'वाइुक्य, (२) बेंगीन्वालक्य, (इ) कल्याणी के चालक्य और (४) गुजरदेशके 'ाठक्य । किन्तु वाचस्पति गेरोलाने 'संसकत साहित्यका इतिहास मैं तृतीय देंगी चालक्य ( पूर्वी चाठुक्य ) कुलकों प्रथम वातापि चालक्यकुलकी एक छाखा मानकर तीन ही चालक्य कुलोंकों प्रधान माना दै (१ दाक्षिणात्य चालक्य कुछमें प्रथम शासक 'तैलप” हुआ । यद 'कीर्तिवर्धन' ( द्वितीय ) का बंदज था 1 वातापि कुलके चाछुक्योंका इसके साथ वंशज सम्बन्ध था । 'कल्याण” के चाछुक्य कुछके उत्तराधिकारी क्रमशः “सत्याश्रय” ( ९९७-१००८ ईं० ), 'विक्तमादित्य! ( पश्नम, सम्भवतः १००८-१०१६ ई० ), 'जयर्सिद” ( द्वितीय, १०१६-१०४२ ० ), 'सोमेश्वर” प्रथम आइवमरल ( १०४२-१०६८ इं० ), सोमेश्वर ( द्वितीय, सम्भवतः १०६८- १०७६ ई० ) और प्रकत मद्दाकान्यका नायक 'विक्रमाइदेव” ( पष्ठ, १०७६-११९६ ई० ) हुए* | पं ० कमलेशदत्त त्रिपाठीने इस सत्याश्रयके वाद विक्रमादित्य ( पश्चम, १००८- १०१४ ई० ) श्रीर 'भय्यण' ( १०१५ ई० ) चाठक्य कुछके दो राजॉंका उस्लेख किया हैर । किन्तु इनका उर्लेख विल्दणने अपने मद्दाकाव्यमं नददीं किया है । हाँ, *'अय्यण' का नाम “चालक्यराज-'मय्यण' वंशचरित” मददाकाव्यमे आया है, और उसमें “वालक्य” कुलकी उत्पत्ति 'विष्णु'के अंदाते बतलायी गयी है । यथा-- “आीमहासुनिसवाच-- श्रयतां सावधानेन्‌ शेतसेद॑ पुरातनसम्‌ 1 चालुक्यक्लजातानामतिद्यां.. महददुभुतम्‌ ॥ ४७ ॥ चिष्णोर॑शाव्‌ समुदु ूतो चंशोडयं चेष्णवो भुवि । तद्ंद्राजानां नामानि पुण्यानि निगदानि वः 1 ४८ ॥ हि भ भर ततः झातानीक इति तस्मादुद्यनो चूपः ॥ ६० ॥ यशपुज्प्रमावेण यस्य राज प्रभावितस्‌ । भारत भारतं जातं देवदानवपूजितमू ॥ ६१ ॥ १. संस्कृत साहित्यका इतिददास, ए. ५९३ । २. संस्कृत सादित्यका इतिहास (ए. ५९४) 1 २ वि० भू




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