दिल्ली सल्तनत | Delhi Sultanat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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्ठ दिल्‍ली सस्समत अश्रमण के समय उन्दोंनि सोचा या, इसलिये इनकी रका का कोई समुचित प्रबस्घ वहीं किया गया था । चमक दशा--घामिक भ्राघार पर मी शिरावट स्फ्प्ट थी शोर ऐसा होना स्वाभाविव भी था । समाज से जब इतनी झधिक सन थी तो पर्म वा झछूता पह जाना नितान्त घसम्सव था ।. मन्दिर धौर दौद्ध-विहार पर्विक्रता के केन्द्र मे सहकर झनावार धौर मोग-विलास के घदड वन चुके थे « मम्दिरों से देवदामियों की प्रथा ते इनकी ्स्टाचार शोर भ्र्नेतिव श्िया-दत्ापों का अखाड़ा चना दिया पा घौर देवत्व की झाद से ये निर्विरोध पतप रहे थे । वीद्धनविज्ञार थी जिसी प्रकह्र सबीछे नहीं थे । शिक्षा-सस्याएँं भी इस श्रप्टादार से भुक्त नहीं थों । चिनमणिला के विद्यालय मे जब एक विद्यार्थी में पास शराद की डोतल पायी गई तो मालुम चुधा कि बह उसे एक सिलुस्ो से प्राप्त हुई थी # यहां तक भी इस सिरावर को सम्भबत सकने बिए जा सवता था परन्तु यह यही तक सीमित ने थी । विधा्धी वी दण्ड देन के सम्दत्ध मे भी विधोलय के भप्रचिवहरियों से सतभेद खड़ा हो गया 1 यदि इस धनाधार बा पढ-विपल हो सरता है सो शिरावट का झास्पती से झतुमानि लंगयया जा सकतर है । धार्मिक भौर शिक्षण-सस्थामों थे इस प्रवार वी अर्नतिकता भर सनायार कार विद्यमान होता समरज की धर्नेलिक्ता कर कारण भौद परिशाय दोनो ही था । यह सम्मव है. कि जत-सायाररण इस अ््नेनिकता से धलग-मतग रब हो, परन्तु शासक घोर शिक्षित-वम बी सदू अनेतिवतता देश को दुर्बे बनाने वे लिये पर्याप्त थी दसके साथ हो दामसार्गी सम्प्रदाय लोकप्रिय होते जा गद्य जिनमे सुरकपान, माझ-भदणा उसने पमुयायियों की. धामिक सिसामो में रास्सिलित ये । वास्तविकता गढ़ भी कि धर्म को मूल भावना! का गला धोट दिया गया था शौर उसके स्यान पर धामिक बमेंस्रण्ड घोर भ्रत्पथिश्वोस-जनित सयरता थे स्पान से लियर था । इस्ने-प्रसोर से इसका एक रोचक लिन इस प्रकाद दिया है हर भारत से यद्द मूति (सोसताव की ) सबसे वही थी । जब भी चम्द्-प्रडण होगा था. तो हिन्दू इस सस्दिर को थार करते थे भर ल्हाखो भादमी यहा पुकवित होते थे ।* ”““समुद में जो ज्वार-माटा ऑ्ाता है उसका शर्थ यह है हि समुद मू्ि की पूजा करने भाता है । इस मन्दिर मे बहुसूत्प मेंट चढइई जाती थीं 1 इसमें सेवकी मी थी चढुमूल्प सेंट सिलतो थो । इस सा्दिर को दस हुआार गाव दिये हुये थे श्र यहीँ खसम प्रकार मे बहुसूल्प रस्तों का सण्डार थों व जार के सोग गंगा तदी चर बडा दिश्दास करते हैं 4 सोमनाथ भर गम वे बीच दो सो परसयं का श्स्तर है, परन्दु मूति के स्नान के लिये झतिदिन गगाजत लापद जाना भा 3 पूजा करने के लिये धतिदिन एक हजार द्वाह्मण मन्दिर में सपम्यित रहते थे । से हो लोन को दर्गेन कराते थे । याभियों के दाढ़ी थम सिर भू ढने मे चिपे तीन सो नाई तेयार रहते वे ४ मन्दिर ने द्वार पर सादे तीन सो मनुष्य समन




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