कंकाल | Kankaal
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.12 MB
कुल पष्ठ :
238
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अब शीत की प्रबलता हो चली थी । उसने चाहा, खिड़की का पत्ला बन्द
कर ले । सहसा किसी के रोने को ध्वनि सुनाई दी । किशोरी को उत्कंठा हुई,
परन्तु बया करे, “बलदाऊ' बाजार गया था । चुप_रही । थोड़े ही समय में बल-
दाऊ भाता दियाई पडा ।
आते ही उसने कहा--बहूरानी, कोई गरीब स्त्री रो रही है । यही नीचे पड़ी
है।
किशोरी भी दुःखी थी । संवेदना से प्रेरित होकर उसने कहा--उसे लिवाते
क्यो नहीं आये, कुछ उसे दे दिया जाता ।
बलदाऊ सुनते ही फिर नीचे उतर गया । उसे बुला लाया । वह एक युवत्ती
विधवा थी ! विलख-बिलखकर रो रही थी । उसके मलिन वसन का अंचल तर
हो गया था । किशोरी के आश्वासन देने पर वह सम्हली और बहुत पूछने पर
उसने अपनी कथा सुना दी--विधवा का नाम रामा है, वरेली की एक श्राह्मण-
वचन है। दुराचार का लांछन लगाकर उसके देवर ने उसे यहाँ लाकर छोड़ दिया ।
उसके भ्ति के नाम की कुछ भूमि थी, उस पर अधिकार जमाने के लिए उसने
यह कुचेक्र रचा है।
किशोरी ने उसके एक-एक अक्षर पर विश्वास किया; क्योंकि घह देखती
है कि परंदेश में उसके पति ने ही उसे छोड़ दिया और स्वयं चला गया । उसने
कहा--तुम घबराओ मत, मैं यहाँ अभी कुछ दिन रहूँगी । मुझे एक ब्राह्मणी
चाहिए ही, तुम मेरे पास रहो । मैं तुम्हे बहन के समान रक्खूंगी ।
रामा कुछ प्रसन्न हुई । उसे आश्रय मिल गया । किशोरी शैया पर लेटे-लेटे
सोचने लगी--पुरुप बडे निर्मोही होते हैं, देखो वाणिज्य-व्यवसाय का इतना
लोभ कि मुझे छोडकर चले गये । अच्छा, जब तक वे स्वयं नहीं आयेंगे, मैं भी
नहीं जाऊँगी । मेरा भी नाम “किशोरी है !--यहीं चिन्ता करते-करते किशोरी
सो गई ।
दो दिन तक तपस्वी ने मन पर अधिकार जमाने की चेष्टा की; परन्तु वह
असफल रहा । विद्वत्ता के जितने तर्क जगत को मिथ्या प्रमाणित करने के लिए
थे, उन्होंने उग्र रूप धारण किया । वे अब समझाते थे--जगत् तो मिथ्या है हो,
इसके जितने कर्म हैं, वे भी माया है । प्रमाता जीव भी प्रकृति है, क्योकि वह भी
अपरा प्रकृति है । जब विश्व मात्र प्राकृत है, तब इसमें अलौकिक अध्यात्म कहाँ ।
यहीं खेल यदि जगत बनानेवाले का है, तो वह मुझे बेलना ही चाहिए । वास्तव
मे गृहस्य न होकर भी मैं वही सब तो करता हूं जो एक संसारी करता है--वही
कंकाल : ईद
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