निराला रचनावली भाग 5 | Nirala Rachanavali Part - 5

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निकली, सभी कायदे से श्री भागव लिखित ही मानी जायँगी । लेकिन श्री भार्गव ने स्वयं संकेत दिया है कि सम्पादकीय टिप्पणियाँ वे अकेले नहीं लिखते, बह्कि उन्हें लिखनेवालि 'मुधा' के सम्पादकीय विभाग से सम्बन्धित अन्य लेखक भी है । 'सुधा' के फरवरी, 1930 के अंक में 'सुघा की श्री-वृद्धि' शीपक एक सम्पादकीय टिप्पणी निकली थी । यह श्री भार्गव द्वारा लिखी गयी थी । इसमे वे कहते हैं : सम्पादकीय विचार अब सुधा में अधिक रहने लगे हैं। हमारा विचार है कि इसी तरह 20-25 पृष्ठ हमलोग लिखा करें ।” इस कथन में 'हमलोग' शब्द ध्यातव्य है। इससे स्पप्ट है कि सम्पादकीय टिप्पणियाँ केवल वही नहीं, बटिक दूसरे लोग भी लिखा करते थे । निराल। ने वैसी कई रिप्पणियाँ अपने निवन्ध-संप्रहम में बामिल कर उपर्युक्त त्तथ्य को सिद्ध कर दिया है। वे टिप्पणियाँ 'सुधा' में बिना लेखक के नाम केनिकली थी और निराला के निवन्घ-संग्रह मे मौजूद हैं ! निराला ने इन टिप्पणियी को ध्यान में रखकर ही डा. रामविलास शर्मा के एक प्रदन का उत्तर देते हुए यह कहा था कि पन्नों में बहुत से लेघ और नोट लिखे है जो मेरे संग्रह में नहीं आये ।” [साहित्पन्साछना (3), पु. 399] डा. शर्मा ने लिखा है कि “घर-गुहस्थी के काम से छूटी पाकर निराला 'सुधा' के सम्पादकीय विभाग में काम करने लगे। वह कुछ दिन लखनऊ रहते, फिर गाँव चले आते । 'सुधा' से इतने पैसे न मिलते थे कि रामकृष्ण के साथ लखनऊ में रह सकें । पत्रिका के लिए वह घर पर सामग्री तैयार करते ।” [साहित्य-साधना (1) , पू. 18 | श्री भार्गव के नाम गढाकोसा से लिखे गये अद्यावधि असंकलित निराला के एकाधिक पत्रों में इस बात के संकेत हैं किये 'सुधा' के लिए सम्पादकीय टिप्पणियाँ (नोट) लिखा करते थे। मार्च, 1930 को लिखे गये एक पत्र में वे कहते हैं: “नोट कुछ बच रहे होगे। कुछ भेजता हूँ, परसी तक ।””* राजनीतिक नोट जेंसा मैंने आपसे कहा था, सुधीन्द्रजी से लिखवा लीजिएगा।” इससे यह भी संकेतित है कि “सुधा' में सम्पादकीय षिप्पणियोँ लिखनेवालो में एक लेखक श्री सुधीन्द्र भी थे । पुन: 1 अप्रैल, 1930 को निराला गढ़ाकोला से ही श्री भागंव को लिखते हैं : “आज नोट भेजता हूँ । साहित्य-सम्मेलन की स्पीच मुझे नहीं मिली । इसलिए नोट नहीं भेजा जा सका । यहाँ सिर्फ एक बंगला पर्ट आता है, इससे बहुत उपादा आाश अएपको नहीं रखनी चाहिए ! ठीन-चार अच्छे नोट परसों तक सोच-विचारकर भेजूंगा ।” इसी तरह सम्भवतः कुछ वाद के एक पत्र में जिसमें उन्होंने तिथि नहीं दी है, लिखा है: इस फाल्गुन में साहित्यिक-सामाजिक नोट नही दे सका । चैग के लिए कहानी, चोट आदि भिजता हूं, कुछ वाद ।” इसो पत्र में उन्होंने नीचे लिखा है: बुखार से पहले के लिये हुए दो नोट भी भिजता हूँ । समय मोर जगहही तो दे दीजिएगा। मनोरंजक हैं ।” डा. शर्मा ने हिन्दी में अनेक जरूरी काम किये है । उनमे एक काम निराला को सम्पादकीम टिप्पणियों की भोर ध्यान दिलाना भी है। साहित्य-साघना (1) में उन्होंने लिखा है : निराला ने 'सुधा' को हिन्दी की श्रेप्ठ साहित्यिक सामाजिक पत्चिका बना दिया। इन दिनों जैसी सम्पादकीय टिप्पणियाँ 'सुधा' में निकली, बैसी निराला रचनावली-5 | 5




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