श्रीकृष्ण विज्ञान | Shri kriahna Vigyan

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Shri kriahna Vigyan  by रामप्रसाद पुरोहित - Ramprasad Purohit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ श्री: ॥। दितीयावृत्ति-निवेदन *+टप्थिजटररािनणाण+ सन्‌ १६२१ में इस “कृप्ण-चिज्ञान” का प्रथम संस्करण प्रकाशित हुया था । पूरे दस वर्ष पश्चाद यह दूसरा संस्करण अब प्रकाशित हो रहा ऐ। उस पहिलेवाले संस्करणमें अजुवादके साथ मून्न शोक नहीं दिये गये थे । यह उसमें एक बढ़ी भारी घ्रुटि थी । क्योंकि यह एक स्वाभाविक यात है कि किसी संस्कृत-घुन्दका भाषा-चुन्दम अनुवाद पढ़कर, पाठकके हृदयमें यह इच्छा सहज ही उत्पन्न हो जाती है कि देखें, ल्‍ मूलसे इसका मिलान किया जाय । यदि मूल अनुवादके साथ नहीं होता है तो पाठ्कको बढ़ी असुदिधा होती है। आाश्रर्य नहीं बहुतोंको ऐसी द्यामें क्रोध सक उत्पन्न हो जाता हो। किन्तु मूक साथमें रहनेसे यह नहीं शोता । प्रद्युत्त पाठ्कोंको--ऐसा होनेसे--ऐसे अजुवाद- अन्यके पढ़नेमें बढ़ा आनन्द आता है । साथ ही इच्छाकी पूति अचिरात्‌, हो जानेसे बहुत कुछ मनोरश्षन भी होता है। इस संस्करणमें, योग्य प्रकाशकने इसी वातपर दृष्टि रखते हुए, अजुवादके साथ मूलको भी स्थान दे दिया है । और इस ग़ूबीके साथ दिया है कि मिलान करनेसें पाठकको किसी श्रकारकी अद्चन नहीं हो सकती । दूसरे, यद्‌ किसीको केवल अनुवाद या केवल मूलहीका पाठ करना अभीष्ट हो तो बिना किसी भसुचिधाके वह ऐसा भी कर सकता है




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