कवि भारतेन्दु | Kavi Bhartendu

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Kavi  Bhartendu by श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र -Shri Lakshminarayan Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(1 १७. ) प्रयागंदत्त---पगली... है... स्त्री को जब ब्रह्मा बनाने बेठ .थे...सन्देह से उसका हृदय पहले बनाया..तुम डर गयीं कि कहीं बेगम तुम्हारे उनको . माघवी--ग्ौर तुम्हारा पुरुष का हृदय किस चीज से बनाया था ? प्रयागदत्त--ठुम लोगों के लाल तलव से टढ़ी भौं से कटीली आँखों से..प्रपने पुरुष के साथ किसी दूसरी का नाम न श्राने पाये । कहट्टीं झा गया फिर तो तुम लोगों का सन्देह करवट लेने लगा । माघवी-- कातर होकर | नहीं बताश्रोगे ? . प्रयागदत्त--इस देह से वे कभी उनके पास नहीं गये पर उनके यद्य का शरीर वे देख चुकी हुं। वें जानती हु.कि भारतेन्दु बाबू हिन्दी भाषा के मुकुट हूं। उनके परिचय का चाव किसे नहीं है। मूपाल की रूप रतन जी न साधवी--यह किस का नाम है ? ल प्रयागदत्त--हिन्दी पदों मं बेगम न श्रपना यहीं उपनाम रखा है + म अब चलूगा...नहीं तो फिर तुम न ग्रह पद याद करोगी न उनके सामन- गा सकोगों । तण्ब . ८ साघवी--कह दगी पंडित जी बजाय रह गय. मुझ प्रयागदत्त-- यह डर होता तो वें तुम्हारे पास भेजते नहीं मुझे... वह जानते हूं यह ब्राह्मण बिना दांत का है। माधवी--तभी दो के रहते तुम्हारा तीसरा ब्याह जो करा दिया. उन्होंने... व््ज प्रयागदत्त--उस ब्याह के लिये सारा खच॑ दिया और उन्हीं के आशीष से मुझे पुत्र भी. हुमा ।




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