दरका हुआ दर्पण | Darkaa Huaa Darpand-a
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.59 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दरका हुआ दर्पण / 15 इससे पूर्व जो सजय स बाते हो रही थी। उसमें लाज का परदा-सा खड़ा था। पर अब वह परदा हट चुका था। संकोच का बाँध टूटते ही हृदय की बातें निकलने लगी थी। मैं सुनती हूँ यहाँ के किसी का भी सबंध उस गॉव में नहीं है फिर . . ? ठीक ही सुनी हो भाभी मेरा घर तो जतनसंरा पडता है। मैं तो यहाँ मामा क घर पर रहता हूँ। उसी के कृषि कार्य में हाथ बटाने आया हूँ कुछ दिनो क लिए. । मेरी मौसी को जानते है-आए? हॉँ हाँ मैं तो कई बार उसक दरवाजे पर गया हूँ। इसीलिए तो पूछ रहा था। वहाँ तो आपकों जब भी देखा खुशी से चहकते हुए देखा था-भाभी। पर यहाँ तो ...1 नलनी आँखों में उमड़ते आँसुओ को नहीं रोक पायी। वह बरबस ही बरस यड़ी। हृदय की सारी करुणा-गाथा को उलीचने लगी.....। जिसे वह महीनी से संजाये रखी थी। वह भूल गयी थी-कि सजय पराया पुरुष है। इस सुनसान ऑगम में उसके साथ बाते करते देख सास-श्वसुर क्या सोचेगे। नारी जब भावना में बहती है-तो अपना सर्वस्व न्योछावर करने में भी देर नहीं लगती। पाषाण बनते तो उसे कम ही देखा गया है। देखने से ही वह कोमल सलज्ल.. . दिखाई पड़ती है। इसीलिए तो उसे प्रेम का प्रत्तिरूप माना गया है। स्वभाव से ही पुरुष कठोर आर नारी कोमल होती है। घाटों गुजर गये। बातों में दोनों इतने डुब गये थ-कि पता हीं नहीं चला। उसकं सास-श्वसुर दरवाजे पर पहुँच गये थे। शायद दिनकर अस्त हो चला था। इसलिए वे दोनों खेत पर से वापस आ गये थे। अपनी सास की आवाज सुनकर नलनी चौंक उठी। जैसे स्वनलोक में बिचरते हुए नीद उचर गयी हो। उसे यथार्थ का भान हुआ। संजय भी हड्बड़ाकर खड़ा हुआ। और चलते हुए बोला- मै कल ही आपके मायके जाऊँगा भाभी | उसकी सास ड्योढी पर पहुँच गयी थी। सजय को आँगन स निकलते दंख उसकी आँखें उल्लू की तरह गोल हो गयी ....। ब चल बल जत्न से विश्वास का अंत होता है वहीं से संदेह का आविर्भाव होने सगता है। ः पति से प्रेम नही मिलने के कारण मलना चिडचिडे की बन गयी थी
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k4 kriket
at 2022-06-03 10:16:35