छत्रसाल महाकाव्य | Chhatrasal Mahakavya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21.7 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| (१) आखुरी मुगल-युग | आसुरी मुगल-युग |
जिन बर्बर,छल-संघातों से कर नैश-आक्रमण बाबर ने
सत्ता के पग थे जमा लिए, राणा साँगा हारे रण में
वह धर्मयुद्ध की .बात रही, इस सभ्य धर्म के भारत में
राजा करता क्षति पूर्ति; कुषक की कृषि-क्षति जो होती रण में ।
दिन में करते जो युद्ध, परस्पर संध्या में मिलते-जुलते
आहूत-युद्ध करते सन्मुख,रजनी में जो सुख से सोते
. बर्बर छल-बल क्रूरता कपट धूर्तता यवन- रणनीति रही
आपसी फूट महिपालों की, यवनों की बनती जीत रही |
नय नीति-सिद्ध थी युद्ध-कला, अनुपम साहस वीरत्व रहा,
थी भिन्न यवन-रणनीति किंतु, छल ही जिसका अस्तित्व रहा ।
नर वीर न समझे भारत के,छलियों की इन छलनाओं को,
वे परम्परा के भक्त, मान देते सुनीति कलनाओं को;
अतएव पराजित हुआ राष्ट्र, अकबर की धूर्त कुचालों से,
. उस कपटनीति ' से, और मूर्ख उन रजपूती करवालों से
उनको प्यारे निज प्राण रहे, हो दंभ-स्वार्थ के वशीभूत
व निज धर्म कर्म संस्कृति-स्वदेश के नाशक जो कारणीभूत ।
बन गये हिंस्-पशु सिंह, हिन्दुन्नन का करने आखेट लगे
मुगलों के संबंधी गुलाम, करने सिजदा समवेत लगे
जो जुड़ न सके भारत-गौरव, निज वीर बंधुओं से मानी
जो स्वार्थ गुलामी के सुभक्त, माँ के कुपूत जो अपमानी
ओ रे ! कलंक भू के, लख़ित तुमसे माता का दूध हुआ
ओ नाम नर्क॑ के तुमसे ही भारत का गौरव लुप्त हुआ ।
सोचा न कभी हिन्दू-जन को, गोधन,मंदिर-विध्वंस हुए.
न ...... सब लुटे ग्राम-धन बालाये, नारी-सतीत्व शुचि भ्रंश हुए
हो गया भ्रष्ट सब धर्म-देश संस्कृति का हिमगिरि बिखर गंया
. मैली पावन-जाह्नवी, दासता- संकट,भारत- सिहर गया |
.... जो शेष मातृ-भू के सुवीर, लड़-लड़ वे रण बॉकुरे समर !.
. सो गए धरा पर लोहू से, इतिहासों मे लिख नाम अमर ।
रो ओ री लेखनी ! सजग कर ले, स्मरण उन्हीं नरवीरों का
प्रति शब्द-शब्द में नमन करे, उनवीर भुजा, असि तीरों का.
यह समय सजग कर युवजन को, जागृत कर भूषण की वाणी
. शिव-छत्रसाल से वीर उठे, इस धर्म-धरा. पर नर नामी
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