छत्रसाल महाकाव्य | Chhatrasal Mahakavya

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Chhatrasal Mahakavya by डॉ. रामकुमार सिंह - Dr. Ramkumar singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| (१) आखुरी मुगल-युग | आसुरी मुगल-युग | जिन बर्बर,छल-संघातों से कर नैश-आक्रमण बाबर ने सत्ता के पग थे जमा लिए, राणा साँगा हारे रण में वह धर्मयुद्ध की .बात रही, इस सभ्य धर्म के भारत में राजा करता क्षति पूर्ति; कुषक की कृषि-क्षति जो होती रण में । दिन में करते जो युद्ध, परस्पर संध्या में मिलते-जुलते आहूत-युद्ध करते सन्मुख,रजनी में जो सुख से सोते . बर्बर छल-बल क्रूरता कपट धूर्तता यवन- रणनीति रही आपसी फूट महिपालों की, यवनों की बनती जीत रही | नय नीति-सिद्ध थी युद्ध-कला, अनुपम साहस वीरत्व रहा, थी भिन्न यवन-रणनीति किंतु, छल ही जिसका अस्तित्व रहा । नर वीर न समझे भारत के,छलियों की इन छलनाओं को, वे परम्परा के भक्त, मान देते सुनीति कलनाओं को; अतएव पराजित हुआ राष्ट्र, अकबर की धूर्त कुचालों से, . उस कपटनीति ' से, और मूर्ख उन रजपूती करवालों से उनको प्यारे निज प्राण रहे, हो दंभ-स्वार्थ के वशीभूत व निज धर्म कर्म संस्कृति-स्वदेश के नाशक जो कारणीभूत । बन गये हिंस्-पशु सिंह, हिन्दुन्नन का करने आखेट लगे मुगलों के संबंधी गुलाम, करने सिजदा समवेत लगे जो जुड़ न सके भारत-गौरव, निज वीर बंधुओं से मानी जो स्वार्थ गुलामी के सुभक्त, माँ के कुपूत जो अपमानी ओ रे ! कलंक भू के, लख़ित तुमसे माता का दूध हुआ ओ नाम नर्क॑ के तुमसे ही भारत का गौरव लुप्त हुआ । सोचा न कभी हिन्दू-जन को, गोधन,मंदिर-विध्वंस हुए. न ...... सब लुटे ग्राम-धन बालाये, नारी-सतीत्व शुचि भ्रंश हुए हो गया भ्रष्ट सब धर्म-देश संस्कृति का हिमगिरि बिखर गंया . मैली पावन-जाह्नवी, दासता- संकट,भारत- सिहर गया | .... जो शेष मातृ-भू के सुवीर, लड़-लड़ वे रण बॉकुरे समर !. . सो गए धरा पर लोहू से, इतिहासों मे लिख नाम अमर । रो ओ री लेखनी ! सजग कर ले, स्मरण उन्हीं नरवीरों का प्रति शब्द-शब्द में नमन करे, उनवीर भुजा, असि तीरों का. यह समय सजग कर युवजन को, जागृत कर भूषण की वाणी . शिव-छत्रसाल से वीर उठे, इस धर्म-धरा. पर नर नामी




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