मंत्रविधा | Mantravidhaa

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Book Image : मंत्रविधा  - Mantravidhaa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषार्टीकासाइिता । ८ अथ षटकमंणा लक्षणम । रोगकृत्याश्रह्ादीना निरास झान्तिरीरिता । वय जनाना सवेपां वि वेयत्वसुदीरितम ॥ प्रवत्तिरोव संवेपा स्तम्मन समुदाडतम । स्निग्धाना द्वेपननन मिथोविद्रेषण मतम्‌ ॥ उच्चाटन स्वदेनादेश्रेझन परिकीर्तितम्‌ । प्राणिना प्राणहुरण मारण समुदाह्तम्‌ ॥ स्वदेयतादिक।लादीन्‌ ज्ञाता कमाणि साधयेत्‌ ८ जिमक ड्वारा राग, फ़त्या आर ग्रह इत्यादिके टोपकी झाति टोती हैं उसको झातिक्म फ्हत दे । जिसके ढारा जीवाका वश्ीमूत क्यिजाता है उसका नाम वहीक्णण है , जिसके ड्वारा जीवाफी पमज़त्तिका राध तोता है, उस कायकों स्तमन कहते ह । आपसम 1समभावापय पुरुषाकी प्रीति नष्ट कनेम उस प्फ्रियाका विद्रेप कहते दे । जिसके ढ्वारा फ्सी मनुष्यका अपने तडा इत्यातिसे दूर किया जाय उसका उच्चा तन कहत दे । जिसके होगे जीवका प्राणनाश किया जाय उसका नाम मारण है । यदि यह सब काय करन हा ता




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