Kyon by माधवाचार्य - Madhavacharyaश्री कंठ शास्त्री - Sri Kanth Shastri

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श्री कंठ शास्त्री - Sri Kanth Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका [ १७ ] भास है अन्य कोई दोष नही है । यदि श्रागमार्थ भी तर्कानुमान से सिद्ध ही होता तब तो सत्प्रतिपक्ष झादि दूषणो से ही पुर्वोक्त भ्रनुमान दूषित हो जाता, फिर “झागर्साविरुद्धत्वातु हेतु से उसे श्रनुमानाभास केसे कहा जा सकता *? तभी जेसे प्रत्यक्षागम्यावगमार्थ ही झागम की ग्रपेक्षा होती है, श्रपरीक्षित श्रनुमान श्रौर श्रतत्पर श्रागम से प्रत्यक्ष प्रबल होता है, प्रत्यक्ष से साध्याभावादि निद्चित होने से श्रचुमान की दृष्यता प्रसिद्ध है । “श्रादित्यो युप ' इत्यादि स्वार्थ में श्रपय्यंवसित प्रागम भी प्रत्यक्ष विरुद्ध होने से गौणाथंक मान लिये जाते हैं, परन्तु परीक्षित श्रनुमान से भ्रमात्मक प्रत्यक्ष का ही चाध होता हु, जेसे चन्द्र मूर्य श्रादि का प्रादेशमात्र परिमितत्व श्रौर स्थिरत्वादि श्रनुमान _ से बाघित होते ही हूँ । न उपक़मोपप हारादि पद्विघ लिद्धो द्वारा स्वायथ॑पर्य्यवसाधी तत्पर प्रागम से प्रत्यक्षानुमान सबका हो वाघ हो जाता है, -श्रग्निहोत्र- होम श्रौर स्वर्ग . का कार्यकारणभाव प्रत्यक्षाचुमान से विरुद्ध होने पर भी तत्पर श्रागम की प्रबलता से प्रत्यक्षाचुमान का ही वाघ होता है । प्रागम विरुद्ध, अझस्थि-शुचित्वाचुमान का वाघ भी दिखलाया जा चुका है, वेदान्त में ऐसे सहस्नो उदाहरण मिल सकते हैं । तथापि तत्त्व को बुद्धघारूढ करने के लिये यथासम्भव तक का उपयोग दूषित नही हैं इसलिये “श्रोतव्य” इस वाक्य से ब्रह्म साक्षा- त्कारार्थ श्रवण का विधान करके 'सन्तब्य.” इस वचन से श्रूत शयं के व्यवस्थापना्थ उपपत्तियों का श्रादर किया गया है। नेयायिको का कहना है कि यह न्यायचर्चा “्रवणान्तरागता' ईदवर की उपासना हीहे। थे घर्म के सम्बन्ध में ध्रनेक उपपत्तिया ब्राह्मण ग्रत्थो मे मिलती हैं। यद्यपि वहा भा उपपत्ति या प्रवेश जिस शरण मे होता है वह




User Reviews

  • Dada 1008

    at 2020-08-23 05:07:11
    Rated : 10 out of 10 stars.
    "👍"
    👍
  • Jay Laddha

    at 2020-08-23 05:05:36
    Rated : 10 out of 10 stars.
    "Excellent book on Indian traditions & festivals "
    Excellent book on Indian traditions & festivals
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