मांस मनुष्य का भोजन नही | Mans Manushya Ka Bhojan Nahi

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Book Image : मांस मनुष्य का भोजन नही  - Mans Manushya Ka Bhojan Nahi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ (५) हां सु्लमान, ईवाई घादि मघ मधिाहारियों है हाथ ऐे साने में धार्यों को भी मथ मांतादि साना पीना घपराघ पीछे लग पता है। (६) एनके मध मांस घादि दोषों को छोर युर्णों को शद्टण फरें । (७) हां, इतना जवश्य पाहिये फि मय मांस का एटण रुटापि भूल कर भी न करें । वेदादि शाश्त्रों में मांस भक्षण भोर मघ सेवन की घ्ाश्ञा कहीं नही, निपेष सत्र है । थो. मठ खाना कहीं टीफाशों में मिलता है. वह दाम- मार्गी टीकाकारों फी लीला है, इसलिये हनको राझषप फहना उचित है, परन्तु वेदों में कहीं मांस साना नहीं लिखा 1 घट्ाधारत में मांस सत्तसा निजेध सुरों मत्स्यान्मघु मांस मासवछुस रौदन मू । घुर्तें: प्रवर्तितं हम तन्नैतदुवेदेषु कल्पितम्‌ ॥ शान्तिपरं २६५९ ॥॥ सुरा, मछपषी, मण, मास, प्ासव, कृसरा घादि याना सू्ों ने प्रयलित छिपा है, वेद में इन पदार्यों हे खाने-पीने फा दिघान नहीं है । अहिसा परमों सम: सवेप्राणशृतां वर: । प्ार्पिपदें १११२ हा छिसो थी प्राखी छो न मारना हो परमधमं है । प्राणिनासवघस्तात सर्वज्यायान्मतो सम । पृ था घदेदाचं न दूँ हविस्यात्कपशप ॥ फरुंपएं ६९1९३ ॥ मैं प्राणियों का न मारना ही, पयसे एसम मानता हूं । मूठ पादे दोल दे, पर फिसी की दविसा मे फरे । ० न - पे एप न




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