हिंदी साहित्य की प्रवृतियां | Hindi Sahitya Ki Parvati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७: कै ४--जायसी की समाधि, अमेठी 1 श-ुलसी की म्स्तर मूति, राजापुर । ६--तुलसोदास के स्थान का अवशेष, सोरों । ७--संरसिंहजी का मन्दिर, सोरों । प-फकेशबदास का स्थान, टीकमगढ़ और सागर । उपयुक्त सामग्री से तत्कालीन कवियों श्रौर लेखकों के जीवन चरित्र पर पर्यो्त प्रकाश पड़ता है । श्रतः यह श्रालोचकों श्र साहित्यिकों के लिए बड़े महत्व की है । इस समस्त सामग्री के श्रतिरिक्त कवियों के विषय में जनश्र तियों द्वारा भी शान होता है। जनश्र तियाँ यद्यपि विशेष प्रामाणिक तो नहीं होती तथापि उनके द्वारा सत्य की शोर कुछ संकेत तो मिलता ही है । श्रभी जिस बाह्य श्र अतः साइ्य की सामग्री का उल्लेख हुआ है उसके श्राघार पर एक सुनिश्चित साहित्य का इतिहास तयार नहीं हो सकता है। हिन्दी साहित्य में झ्रभी ऐसे बहुत से स्थान हैं. जिनकें विषय में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता । गोरखनाथ का समय, जट्मल का गद्य. सूरदास की जन्म तिथि. कबीर का चरित्र झा्दि को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता. है |... इसके मुख्य्त: दो कारण हैं । एक तो हमारे यहाँ इतिहास लेखन की प्रथा ही नहीं थी । यदि घटनाओं श्र व्यक्तियों के विषय में कुछ लिखा गया तो उनकी तिथि श्रादि के विषय में कोइ महत्व नहीं दिया जाता था । मक्तमाल, वानों त्रादि में चरित्र वर्णित हैं, पर उनमें तिथियों का किंचित्‌ मी निर्देश नहीं है । इसके अतिरिक्त कवियों में स्वयं श्रपने विषय में कुछ नहीं लिखा है । वे या तो श्रपने को तुच्छ समकते थे श्रथवा पारलौकिक सत्ता में लीन थे | वे श्रत्यन्त नगर खमाव के भी होते थे । 'कवित विवेक एक नहीं मोरे' अथवा हों प्रमु सच पतितन की टीको' कहकर वे श्रपनी हीनता वर्रित किया करते थे | इस प्रकार हम देखते हैं कि केशबदास के पूव तक किसी कवि में श्रपना यथे्ट + परिचय नहीं दिया । यह वात दूसरी है कि कवियों ने श्रपनी ग्लानि ओर दीनता के प्रदर्शन मैं श्रज्ञात रूप से श्रपने जीवन की घटनाशों का निर्देश कर दिया है | तुलसीदास जी ने भी थ्पने जीवन की घटनाओं का वर्णन श्रात्स र्लिनि के




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