वीर प्रताप | Veer Pratap
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.4 MB
कुल पष्ठ :
344
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पर, तीन मुराखज़ञादोने यों भाले चलाये ।
राना न सके रोक तो सब तनमें समाये ॥
फौरन ही मगर रानाने सब खींच चलाये ।
इतनेहीमें इक गोलीने आ दाँत गड़ाये ॥
पर, साहसी परतापने छोड़ी नहीं हिम्सत।
लड़ते भी थे करते सी थे जुखमोंकी सरस्मत ॥४४॥
चेतकके भी सीसेपे लगा पएकका शाला।
चहने लगा दस उसके. यहीं ख़ुन-पनाला ॥
वह खींचके फेंका, उसे. गिरनेसे संभाला ।
इतनेहीसें इक शझ्ुने आ खाड़ा भी घाला ॥
और तीन किये चार तो राया न सके रोक ।
ज़खमी हुए; पर दिलमें न था उनके जुरा शोक (४४१
मन्नाने य॒ देखा कि है एरतापपे संकट |
दस एक सौ प्यास चुने जवान दिये झट ॥
और रानाकी इमदादकों (१) पहुँचा चहीं कटपर |
सुग़लोंकी अनी (९) चीरता करता हुआ खटपर ॥
परताएका ले छन्न धरा शीशे द्यपने ।
परतापकी ली मानों बला शीशपे अपने 0४६0
वह छत्र ही था. सत्यसा परताएकी पदचान |
उस क्षत्रहीपर करते थे सब वार सुसर्मान ४
सदी कल
(१) इमदाद--सहायता |
(नो झनी--मेणी, वुलार |
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