वीर प्रताप | Veer Pratap

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Veer Pratap by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पर, तीन मुराखज़ञादोने यों भाले चलाये । राना न सके रोक तो सब तनमें समाये ॥ फौरन ही मगर रानाने सब खींच चलाये । इतनेहीमें इक गोलीने आ दाँत गड़ाये ॥ पर, साहसी परतापने छोड़ी नहीं हिम्सत। लड़ते भी थे करते सी थे जुखमोंकी सरस्मत ॥४४॥ चेतकके भी सीसेपे लगा पएकका शाला। चहने लगा दस उसके. यहीं ख़ुन-पनाला ॥ वह खींचके फेंका, उसे. गिरनेसे संभाला । इतनेहीसें इक शझ्ुने आ खाड़ा भी घाला ॥ और तीन किये चार तो राया न सके रोक । ज़खमी हुए; पर दिलमें न था उनके जुरा शोक (४४१ मन्नाने य॒ देखा कि है एरतापपे संकट | दस एक सौ प्यास चुने जवान दिये झट ॥ और रानाकी इमदादकों (१) पहुँचा चहीं कटपर | सुग़लोंकी अनी (९) चीरता करता हुआ खटपर ॥ परताएका ले छन्न धरा शीशे द्यपने । परतापकी ली मानों बला शीशपे अपने 0४६0 वह छत्र ही था. सत्यसा परताएकी पदचान | उस क्षत्रहीपर करते थे सब वार सुसर्मान ४ सदी कल (१) इमदाद--सहायता | (नो झनी--मेणी, वुलार |




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