हिमाचला | Himachala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नच चेतना मन भर गया भव्य भावों से, जाग उठी रमगय कल्पना, मुग्ध नयन में समा गया रे, मर य्योति का स्विक सपना ! हा, हृदय दी. कुसेमित्त डाली मवुमय नृतन नोड हो. गई, जिससे. कोसल-कुलकुत्तकारी . विह्गिनियों की. भीड हो. गई पाणों में उल्लास भर गया, सप्टि हो. गई सुन्दर सह्सा, जीवन लग उठान- धूप मे लत्साते नीले. सागर-सा चरणों में गति झ्ाई चचल ले. पावन विश्वास सनजीले, चरसाती करनो-े मन में फटे झाते. गीत. सुरीले । का चदक उठी द्राशा पुलकाकुल, ककृत जीवन-तार हो. गया, सतरंगी . श्रभिलापादं का... इन्द्र-घनुपनविस्तार हो... गया ! नई स्योति सी लगी नयन में स्नेह-प्राप्त आलोक-शिखा-सी, स्वाति-चिन्दु सा श्राज पा. गई हटय-चातकी युग-युग प्यासी ! मधुमय वासन्ती बेभव से लदा हुश्रा-सा पुलक रहा मन- ऊपा-रजित, विहग-नियुज्ित मलयज-पुलकित ज्यों कढब-वन | घन्य, शक्ति मगल भावों की । श्राज न कोई रहा क्लेश है, मन, बोलो इतना पाकर भी शव क्या पाना श्र शेप है ? न है मा नव ला व फिकक ग्यारह “5 दे ७2६:- रे




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