हिमाचला | Himachala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.47 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नच चेतना
मन भर गया भव्य भावों से, जाग उठी रमगय कल्पना,
मुग्ध नयन में समा गया रे, मर य्योति का स्विक सपना !
हा, हृदय दी. कुसेमित्त डाली मवुमय नृतन नोड हो. गई,
जिससे. कोसल-कुलकुत्तकारी . विह्गिनियों की. भीड हो. गई
पाणों में उल्लास भर गया, सप्टि हो. गई सुन्दर सह्सा,
जीवन लग उठान- धूप मे लत्साते नीले. सागर-सा
चरणों में गति झ्ाई चचल ले. पावन विश्वास सनजीले,
चरसाती करनो-े मन में फटे झाते. गीत. सुरीले ।
का
चदक उठी द्राशा पुलकाकुल, ककृत जीवन-तार हो. गया,
सतरंगी . श्रभिलापादं का... इन्द्र-घनुपनविस्तार हो... गया !
नई स्योति सी लगी नयन में स्नेह-प्राप्त आलोक-शिखा-सी,
स्वाति-चिन्दु सा श्राज पा. गई हटय-चातकी युग-युग प्यासी !
मधुमय वासन्ती बेभव से लदा हुश्रा-सा पुलक रहा मन-
ऊपा-रजित, विहग-नियुज्ित मलयज-पुलकित ज्यों कढब-वन |
घन्य, शक्ति मगल भावों की । श्राज न कोई रहा क्लेश है,
मन, बोलो इतना पाकर भी शव क्या पाना श्र शेप है ?
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