महाभारत | Mahabharat (sabal Singh Chohan Vicharit)

Mahabharat (sabal Singh Chohan Vicharit) by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आइदिपव्वै । १४ ते वैशस्पायन कथानुसारा। जाते पार तरे संसारा ॥ हराजा रनों कथा विस्तारा। काशौराजा वौर सुवारा ॥ गएकत्या सौनि तासु घर रहंई । तिनके नास सुनी तब कहंडू ॥ गछास्वे जेठि अश्िका साना । सबते छोटि अबलिका जाना ॥ कर्घरषें दश दौते जब तासू । तंबहिं स्वयम्बर करेउ प्रकासू ॥ ताषिश देशके राजा आये । सत्यावती कतहूँ सुनि पाये ॥ गरपषमपाहि कहा तब रानी । बन्ध विवाह कन्या आनी.॥ गैक्लौति स्वयस्वर कत्या सौजै। दूनों बन ब्याह करि दौजे ॥ । जौति स्वयस्व॒र कत्या ल्यावो । एव हमारो से सति जावी ॥ सुनिकं सौनस रघ साजा । काशो गये जहूँ। सब राजा ॥ तौनों कत्या रूप अअपारा। पटथूषणयुत यज्ञ सँकारा। ए सनवाच्छित दर चाहत सोई.। कर जयसाल उपस्थित होई है ... तीनों कत्या एक संग, जयमसाला लिये हाथ । हिं। सनदाच्छित वर चाहतीं; आये वह नरनाघ ॥ ई तौनों कत्या एकहि साधा । सौघस जाइ गहरी त्यहि हाथा है| लौनों कत्या रघहि चढ़ाई. । हँसका रथ तब चला उड़ाई. ॥ रा ल्‍ कंत्या आरत नाद एकारा। रण ठाढ़ तव सबे सुवारा ॥ रा भयो युद्ध तब वरणि न जाई.। सौषम जीते सब वरियाई ॥ गलन अस्त अनेक प्रहार । सीघस दौर काटि सब डारे ॥ पबनकों वर भौषस पाही । को जौसें सन्स ख रणसाही ॥ हार सब राजा वलधारी । मौषम लैंगया तौनउँ करे ।




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