हिन्दी शलोपयोगी भारतवर्ष | Hindi Shalom Yougi Bharatvarsh
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.71 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)याठ पहला-प्राचीव आय 1 . थ्द इस चार नागें। पर ही य्न्थ-रचना समाप्त नहीं हुई । बड़े बडे यह्नों के समय रजव विट्वाद लोग एक होते तब अनेक गहन विपयोपर चर्चा होती रहती था यज्ञ के भिन्न भिन्न रुत्यॉपर स्वचंरीती से अठग अलग अधप्यल्त नियत किये जाति थे 1 उनमें घह्माः नामक एक उपाध्याय रहता था । यज्ञ-रुत्यों के विष में जब कोई याद उपस्थित होता तब उसका फैसिला करने का काम या को दिया जाता था । इस प्रकार के वाद ओर फेसले बहुत होने के कारण फिर उनका समायेश चिरालेही पंथो में किया गया । इन गय्रंथो को घह्मा ब्द के कारण घाझण संज्ञा मिली । फिर बहुत से विपयों को चची अरूण साद़ि एकान्त स्थों में जाकर करना उचित जान पडा इस लिए वाहझाणों छे कुछ मागों का आारण्यक नाम पड़ा । परन्तु ऐसे विपयो में कितनेही विपय. बहुत ही विकट रहते थे । दिद्वाद् लोगों के समुदाय को शरण्य में रुकत्र वेठ कर इस प्रकारके गहन विपयों की चची करनी आवश्यक जान यही कि परमेन्दर का स्वरूप केसा हे सृष्टि को उत्पत्ति जोर उसका परिवर्तन . किन नियमों से हो रहा हे और उनका हेतु कया है । इस छिए अरण्यकों के ऐसे बहुत से प्रकरणों का उपनिपद् नाम पडा । ये उपनिपट ग्रन्थ अत्यन्त नहत्वपुर्ण हे । उनमें सब वेदान्त का सार मरा हे । आदि की चार संदतार सर उनमें से प्रत्येक के घाझण आरण्यक ओर उपनिपद्-इन सब को ुति सथवा वेद कहते हैं । आार्य लोग इस देश में जैसे जिस फेलते गये वेसेही येसे अनेक विंपर्यों में उनका मतमेंद् होता गया | भर उनकी अलग अठन शासाएं यन गई । ग्रन्थॉकाड विस्तार चदुत बढ जाने के कारण विस्तृत विवेचन ध्यान में रखना कठिन माछुम होने लगा । इस लिए सब विस्तार कम करके व्यान में रखने के लिए ऐसे सुलभ वाक्य रचने की चाछ़ पड़ी । जो थोडेही में बहुत अर्थ का चोद कर सकें । इन वाक्यों को सुन कहते हे । सूत्रों के मुख्य तीन सान है १ ) श्रोनसूच धर्यात् चज्ञवायों के नियम । ( २) ग़छसत्र अर्थात् . . अत्येक पुरुप के लिए घरमें विधि-विधान करने के छिए वियम और ( ३ ) पर्मतुद्र अर्थात् समाज का नियमन करनेवाले कायदें । इनके शिवाय फिर व्याकरण न्याय वेदांत आदि दूसरे विपयों पर भी सुन्म्रंथ निर्माण हुए १ उपर जिन धर्मसूच्ों का उछेख हो चुका हे उनमें आये के कायदोंका समा -
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