एक महान नैतिक चुनौती | Ek Mahan Netik Chunauti

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : एक महान नैतिक चुनौती  - Ek Mahan Netik Chunauti

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
: ' डन्कके के बाद ६ प्राण-रक्षा के लिए मनुष्य वहुघा अतिरिक्त श्रम करने को तैयार हो जाता है । यहाँ तो राष्ट्र-का-राष्ट्र जीवित रहने के संकल्प से प्रेरित हो इतना श्रम करने म॑ जुटा हुम्रा था, जितना साघारणत: मानवी क्षमता से परे है । ,इंग्लण्ड की रक्षा का श्रेय इंग्लिश चेनेल, चर्चिल श्रौर ब्रिटिश हवाई- सेना को हैं। चचिल के भाषणों ने जनता में कार्य करने की प्रेरणा भरी | चूंकि श्राजकल की शासन-संस्थाएँ पहले की शासन-संस्थाओं से अधिक दाक्ति- शाली होती हें, इसलिए उनमें उन महान्‌ पुरुषों की तूती बोलती है. जिनके हाथों म॑ ग्रत्यघिक ग्रधिकार होता है श्रीर जिनका जनता पर श्रदभत प्रभाव भा होता हू । तानाशाही देशों में उन महान्‌ पुरुषों का प्रभाव उनके श्रधिकार के कारण पड़ता है, कितु जनतन्त्री राष्ट्रों में उन्हें ग्रपने प्रभाव के कारण अधिकार प्राप्त होता है श्रौर वे उस झ्रघिकार का प्रयोग श्रपने प्रभाव को वृद्धि में करते हैं । चचिल ने ब्रिटिश जनता को अपने उच्चतम स्तर तक पहुंचने में सहायता दी । छोटे-छोटे लोगों ने निराशा प्रकट की 1 कनेंल चार्ल्स लिंडवर्ग ने तो समभ लिया कि इंग्लेण्ड होथ से निकल गया और उन्होंने इस पर शोक भी प्रकट नहीं किया । वीर मार्शल पेताँ को, जिनकी श्रात्मा भयातुर हो गई थी, फ़ांस या इंग्लैण्ड पर विलकुल भरोसा नहीं था । फिर भी चथिल, रूज़वेल्ट श्रौर चाल्स॑ डी गाल को इन पर विश्वास था श्रौर उनके साथ वलदाली हृदयवाले छोटे- छोटे लाखों व्यक्ति थे । डन्कर्क के चार साल वाद, ६ जून, १९४४ को ब्रिटिश सेना श्रमेरिकन 'सेना के साथ फ्रांस में फिर उतरी श्रौर इस घटना के एक वर्ष परचात्‌ ही यूरोप में विजय-दिवस मनाया गया । ये पाँच वर्ष करोड़ों नर-नारियों श्रौर बच्चों के लिए रकक्‍त-पात, भूख, ठंढ और चिन्ता से भरे हुए वर्ष थे । मनुष्य भी कसा ग्रदूभत श्राविष्कार है ! निस्संदेह वह उत्तमतर सौभाग्य का श्रघिकारी है। मनृष्य कम-से-कम युद्ध-विहीन संसार का श्रघिकारी श्रवश्य है । में युद्ध की भयंकरता को देख चूका था, इसीलिए प्रतिदिन प्रकाशित होनेवॉली युद्ध- विज्ञप्तियों को पढ़ते हो मेरी आ्राँखों के सामने गोलियों से क्षत-विक्षत शरीरों या जले हुए टेंकों श्रौर विमानों में भुलसे हुए मनुष्यों के चित्र ख़िंच जाते थे । जब विज्ञप्ति में लिखा होता “दो हवाई जहाज़ वापस नहीं थ्रा सके” तो मेरे नेत्रों के सामने नाच उठता १२ नवयूवकों : की मृत्यु का दृश्य गप्रौर उनके साथ-साथ १२ माता-पिताओं, १२ परिवारों श्रौर म्रनेक मित्रों का चित्र जो उस विज्ञप्ति को सदा याद -रखेंगे श्रौर जब कभी उन्हें उसकी याद श्रायगी तभी उनका हृदय वीतल श्रीर शिथिल हो बैठने-सा लगेगा । यदि युद्ध वस्वुत्त: इस योग्य हू कि हम




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now