राजस्थान के इतिहासक स्त्रोत | Rajasthan Ke Itihasik Strot

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : राजस्थान के इतिहासक स्त्रोत  - Rajasthan Ke Itihasik Strot

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पुरातत्व रास्त्रन्घी सामग्री १३ मठों, स्तूप गौर मन्दिरों के बनाने के लिए किया गया था । से इंटे २ फीट सात इंच लम्दी, १ फूट चार इंच चौड़ी घौर लगभग सीन इन सोटी झववा २०” 9६ १०३ 9६ रे या है या २१ इंच लम्बी पाई गई है। फर्म के लिए काम में ली गई टापलें रर >ररार देती गई है । से ईंट गोहेर्जोदड़ो में मिलने वाली ईटों के सदश हैं । पिशेषता यह है कि बे राद् के झासपास परथर की बहुतायत होने पर भी ईटों का प्रयोग यहां प्रचुर गाभा में किया गया था 1 मठ इन ईटों का प्रयोग बोश सठ के लिए फिसा गया था जो इनका चारों भोर चिसरें रहने तथा ६-४ छोटे फमरों के ग्वशषों से स्पप्ट है । एस सठ की दीयारें लगभग र० रच चौड़ी थीं । कमरों में लाने के लिए तंग मार्ग, गोदाम, चलूतरे श्रादि मरों से प्राप्त होने याली घ्न्य चरतुद्नों में गुद्राएं, जो चौथे कमरे से मिली है, चढ़े महत्व की हैं । वे ३६ मुद्राएं हैं जिनमें से ८ एंच-माफं हूं जो कपड़े में बेंधी मिली । बाकी २८ सुद्राएं यूनानों एवं भारतीय-शुनानी राजापयों की हैं जो एक घड़े में मिली थीं । इन मुद्राय्ों से यह प्रमाणित होता है कि बेराटू प्ुनानी शासकों के म्रघिकार में था, व्घोंकि २८ मुद्राय़ों में से १६ मुद्ाएं मिनेन्डर की हैं । इनसे यह भी सिद्ध होता है कि वीजक की पहाड़ी बौद्धों का निचास रथान था शरीर वह ४० इं० तक चना रहा 1 अन्य वस्तुएं थ इन मुद्राय्ों के भ्रतिरिक्त मठ की इमारत से म्रन्य कई वस्तुएं भी उपलब्ध हुई है। जिस कपड़े में मुद्राएं बेधी हुई थी वह कपड़ा गई का था जिसे हाथ से चुना गया था ।. मृद्भाण्टों में श्रलंक़त घड़े, जिन पर स्वस्तिक तथा श्रिरत्तचक्र के चिह्न चने हुए थे, बड़े रोचक दिखाई देते हैं । मिट्टी की वस्तुद्रों में दीपक, नाचती हुई पक्षी खप्पर, थालियाँ, कू डियां, मटके, लोटे, कटोरे, घड़े श्रादि यहां उपलब्ध हुए हैं । कुछ पत्थर की थालियां तथा छोटी सन्दूकें भी यहां मिली हैं। लोह व ताम्बे की वस्तुग्नों के बनाने के श्रौजार भी यहां की उपलब्धियों में सम्मिलित हैं । ये वस्तुए' २५० ई० पु० से ५० ईसवी तक के काल की निर्वारित की जाती हैं । अशोक स्तम्भ त इस स्थल के दक्षिण की श्रोर छुनार पत्यर के पालिशदार ट्रकड़े श्रौर कई सादे पत्थर के टुकड़े मिले हैं जो निद्चित रूप से ग्रशोक के स्तम्भों के भाग हो सकते हैं । स्तम्भ के कई भागों के अवशेषों में सिंह की झ्राकृति का खण्ड भी सम्मिलित हैं इन टुकड़ों को देखकर एक प्रदन स्वाभाविक उठता है कि इन स्तम्भों को किसने नष्ट किया । नालन्दा के मठ की भाँति सु :« के. रदगयहं कार्य ना हो. भ नल




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now