मीरां की अभिव्यंजना - शैली | Meeran Ki Abhivyanjana Sheli

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Meeran Ki Abhivyanjana Sheli by उषाकिरण शर्मा - Ushakiran Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[5 थीं श्रौर श्रपनी श्रेष्ठता प्रदर्शित करने के लिए इन्होंने भी भ्रतिसंकीणं श्राचरण- पद्धति को श्रपना लिया था ॥ उच्चवर्गीय जातियां भी साधनसम्पन्नता श्लौर साधनहीनता के श्राघार पर दो प्रमुख वर्गों मैं विभक्त हो गई थीं । राज्यसंचालन का काये॑ राजपूत क्षत्रियों के हाथ में था । इनकी भी कई विशिष्ट श्रे खियां वन गई थीं । राज्य की श्र से सामन्तों श्रौर राज्याधघिकारियों को उनके पदाचुसार जागीरें श्रौर मनसबदा रियां प्रदान की जाती थीं । इन्हें (सामन्तों को) श्रपने श्रधिकार-क्षेत्र की भूमि के लगान की उगाही करने का श्रौर अपनी निजी फौज रखने का, श्रघिकार मिला हुमा था, जिसका दुरुपयोग थे श्रपनी विलासी मनोवृत्तियों और श्रवांच्छित महत्त्वाकांक्षाप्रों की पुरति के लिए करते थे । तड़क-भड़क, शान-शौकत, रौव-दाब छोना-भपटी श्रादि को. प्रदर्शनात्मक प्रवृत्ति प्रबल हो छुकी थी । इन्हीं के समान उच्चवर्गीय श्रीमन्तों श्रौर साधनसम्पन्न ब्राह्मणों में भी विलासिता श्रौर वेभवप्रियता की कुत्सित मनोवृत्तियाँ जाग उठी थीं । श्घिकारलिप्सा, स्वार्थ परता, ध्रनेतिकता श्रौर भोगविलाप्त का प्रावत्य हो जाने के कारण समाज में अ्रनेक कुप्रयाए' धौर श्रमानवीय परस्पराए' मान्य भर प्रचलित हो गई थीं । इन कुप्रधामों में चाल-विवाहु, वहु-विवाह, पर्दाप्रथा, सती-प्रथा, जौहर, दास-प्रथा श्रादि प्रमुख थीं जिन्होंने मध्ययुगीन समाज को, विशेषकर स्त्री-समाज को, सर्वाधिक .दुष्प्रभावित किया था । सामान्य परिवारों से लेकर राज-परिवारों तक में संयुक्तपरिवार-प्रणाली का प्रचलन था । परिवार में श्वसुर, जेठ, देवर, ननद, सास, चाचियाँ, ताइयाँ, दादियाँ पर उनके साथ ही भ्रनेक सपह्नियाँ भी रहती थीं, जिनमें प्रायः छोटी> छोटो बातों को लेकर कहा-सुनी, ठीका-टिप्पणी , वाद-विवाद श्रौर कई बार हाथा- पाई भी होती रहती थी । स्त्री श्रौर पुरुष में धर्घाज्ध की भावना समाप्त होकर रक्षिता झौर रक्षक की भावना सवंप्रमुख हो गई थी । चाल्यादस्था से लेकर वृद्धा- वस्था तक स्त्री--पिंता, पति, पुत्र झर इनके भ्रभाव में श्रन्प कुटुम्वीजनों के श्रशि- भावकत्व में रहने को बाध्य थी । पुरुषों की विलासी प्रकृति ने स्त्रियों के वनाव श्युज्धार श्रौर श्रलंकार की प्रवृत्ति को श्रत्यधघिक बढ़ावा दिया था । नित्य नये श्ज्ार प्रसाधनों श्रौर सूल्यवान वस्त्राभूपणों से स्वयं को सुसज्जित रखना स्त्रियों की सबसे बड़ी कमजोरी बन गई थी । चहु-विवाह के कारण उत्तराधिकारः को उचित व्यवस्था नहीं हो पाती थी । राज-परिवारों में महत्त्वाकां क्षिणी स्त्रियां श्रपने पुत्र को राज्य-प्रमुख बनाने के लिए सतत प्रपत्नशील रहती थीं श्रीर कई बार इसके लिए हत्या घ्रौर विपघात जैसे जघन्य कुकृत्यों से भी वाज नहीं श्राती थीं । प्रपनी प्रमुखता बनाये रखने के लिये वे तरह-तरह के पड़्यन्त्र रचाती रहती थीं त्तचा ध्रन्य सर्पात्नियों वे उनके पुत्रों पर नानाविघ श्रत्याचार करती रहती थीं । कई वार उत्तराधिकार के प्रश्न को लेकर वे राज्य के विजातीय तत्त्वों श्रौर विदेशी शासकों तक से सहायता मांगने में नहीं सकुचाती थीं । राणा सांगा की प्रियरानी कमंबती के श्राचरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि उसने श्रपने प्रभुद्व को बनाए रखने के लिए क्या कुछ नहीं किया था ।




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