राजनीति रा कवित्त ग्रंथांक - २०४ | Rajnitee Ra Kavit Granthank-204

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Rajnitee Ra Kavit Granthank-204 by देवीदास - Devidasफतहसिंह - Fathasingh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के समुमिका के १३ अथोचू--'सुख की धक्रता, स्वर मे दीनता, शरीर पर प्रस्वेद तथा भारी भय--ये सब चातें मरणासन्न मानव तथा याचुक में समान दोती हैं ।”” इसके अतिरिक्त धनाह््य के निरन्तर घढ़ते क्लेग', सो की सिन्दा एवं प्रशसा' तथा मित्रों के गुण, सत्याचरण आदि का भी विस्तार से वर्णन प्राप्त होता है । महाकाव्य सच्कत में अश्वघोष, कालिदास, श्रीहषे आडि महाकवियों ने मद्दाकाव्यों की इप्चना की है; जिन में यत्र-तघ्र नीति-वाक्य भी अच्छी मात्रा में उपलब्ध होते हैं 1 सिद्धाथें बुढ़ापे को देख अपने सारथी से प्रश्न करते है; इस पर सारथी. चुढापे के दोषों का इस प्रकार उल्लेख करता है-- रूपस्य हन्त्री च्यसन वलस्य शोकस्य योनिनिधन रतीनासु । नाक स्मृतीना रिपुरिन्द्रियाणामिषा जरा नाम ययेष भरत _ अर्थात्‌--इस व्यक्ति का रूप रग उस बुढ़ापे ने बिगाड़ द्िया है क्रो रूप का नाशक, बल का उत्पादक, शोक का कारण), सानन्दों का उन्भ्रूछक, स्खृति का ध्वसक और इन्द्रियों का वेरी है । व स्त्रियों की वाणी का घन करने क्रे अन्तर श्रमंण नन्द स्त्रियों के मन की इु्नोद्यता का वर्णन करते हुए कंहता है-- प्रददन्‌ दहनोषपि णृद्यते विशरीर: पंवनोपि गूह्मते । कुपितो भरुजगोपि. गृह्यते प्रमदावा तु मनों न गृ्मति ॥।' अर्थात्‌ जछती हुई अग्नि पकड़ी जा सकती है, शरीररदित बायु पकड़ा जा सकता है, छुद्ध सर्प भी पकड़ा जा सकता है, परन्तु स्त्रियों का मन नहीं पकड़ा ज्ञा सकता । .. उधाट 27/5392 3्ाप८ . 21/ए5 बुद्धचरित--झ्रवधघोष--३/३० .. सौन्दरासन्द--भ, देश - न टूस एन




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