मेरी आत्म कथा | Meri Aatm Katha

Meri Aatm Katha by रवीन्द्रनाथ टैगोर - Raveendranath Taigor

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

Add Infomation AboutRAVINDRANATH TAGORE

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
वात्यकाल : €. करने देने के लिये करता था । उस समय, पहले 'क्षेणी में नो स्वातंत्र् सुख प्राप्त होता था, पर साथ ही दूसरे ही क्षण में यह भय उत्पन्न हो जाता था कि यदि कोई देख लेगा तो क्या होगा ? इन दोनों कारसों से उस फौब्वारे के पानी द्वारा मेरे शरीर में प्रानन्द के रोमाँच खडे हो जाया करते थे । बाह्म सृष्टि से सम्ब्श्घ होने की संभावना बहुत कम होने के कारण ही इन कार्यों से सम्बन्ध होता था और इसलिये उक्त कार्यों से होने वाने श्रानत्द का वेग भी तीन्न होता था । सावन सामग्री जब भरपूर होती है तब मन को मत्दता प्राष्त होती है । मन यह भ्रुल जाता है कि आनन्द का पूणे उपयोग प्राप्त होने के कार्य में बाह्म-सामग्री की श्रपेक्षा शर्त: स'मग्री का ही महत्व विशेष होता है झ्ौर मनुष्प की बल्ल्यावस्था में मुव्यत्तया उसे यहीं पाठ सिखाना होना है । बाल्यावस्या में उसके स्वामित्व की वस्तुएं थोड़ी श्रौर तुच्छ होती हैं, तो भी सुख प्राप्ति के म्रय॑ में नवे म्रघिक वश्तुमों की जरूरत नहीं मालूम होनी । जो दु्देवी बालक खेलने की भ्रसंख्य वस्तुप्रों के भार से दब जाता है उसे उन वस्तुओं से कुछ भी सुख प्रात्त नहीं होता । हमारे घर के भीतर के बाग को वाग कहना अतिशयोक्ति होगा क्योंकि उसमें केवल एक रेंड़ का पेड़, मुनक्का 1 अगुर) की दो जातियों की दो बेलें प्रौर नारियल के पेड़ों की एक पक्ति भी थी 1 बीच में क्लुलाकार (गोल) फर्शी जड़ी हुई थी, जिसमें जगह-व-जगह दरारें भी पड़ गई थीं, घास व छोटे-छोटे पीते भी ऊग झ्राएं थे, जो चारों तरफ फल गए थे । और फूलों के पेड़ उसमें वही वचे थे जिन्होंने मानो यह प्रविज्ञा कर लो थी कि कुछ भी हो जाय, हम नहीं मरेंगे । वे श्पना कततंव्य इतनी तत्परता से पालन करने थे कि माली पर उनकी चिन्ता न ररसे के अपराध का भ्रारोप करने का मौका ही नहीं मिलता था । इस वाग के उत्तर कोने में धान काटने के लिए एक छप्पर था । इस जगह श्रावश्यकता पड़ने पर श्न्तःपुर के मनुष्य एकत्रित होते थे 1 ग्रामीण रहन-सहन का यह श्रतिम अवशेष भाग शाजकल पराजित होकर लज्जा से किसी को मालूम न होते हुए ही नष्ट हो गया है । यद्यपि मेरे बाग की यह दशा थी, तो. भी मुझे यह मालुम होता था कि 'एडस' का नन्दनवन भी हमारे वाग की श्रपेक्षा अधिक सुशोशित नहीं होगा क्योंकि 'एडम' और उसके वाग दोनों हो दिगम्वर थे । उन्हें वाह्य वस्तुम्रों की श्रावश्यकत्ता ही नहीं थी । ज्ञानवृक्ष का फल खाने के वाद ही मानव जाति के वाह्य साघनों शोर भूषणों की वृद्धि होती है भ्ौर दह वृद्धि ज्ञान फल के पूर्णतया पंच जाने तक ही होती रहेगी । हमारा यह घर के भीतर का भाग मेरा नत्दन वन ही था श्रौर वह मेरे लायक ठीक भी था । वर्पा कऋतु में सुवह के समय जागते ही इस वाग की आर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now