संसार की पांच प्रमुख शासन - प्रणालियाँ | Five Major World Government

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Five Major World Government by अनूप चंद कपूर - Anoop Chand Kapoorविश्व प्रकाश - Vishv Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हि सचिघान की प्रकृति श्नौर विषय-वस्तु दि _ग्रर सयोग का जात (७0० शत ०५ एाब्तणाफ &पते एााधा०) है । वह सयोग का जात (४16 ठाताते 04 ज्ाहठेणण 808. 00806) है ॥ वह एक ऐसे सका का राम दे कसम सविकारतन कक) सम का परिणाम है जिसमें अ्घिकार-पत्र (लाढप७छा8) संविधियाँ (86 +पर५ट8) न्यायिक _निणंय (ताक तद० 8०08) पूर्वेहष्ठन्त (८००००) रीतिनरिवाज जि 1 सस्थाश्ो का रूप- या लिए श्रग्रेजी संविधनि का सदंव ही विकास एव सनोघन हो रहा है । वह एक गतिशील सविधान है उसकी जड़े श्रतीत में श्रौर कि था कि श्राज के इगलैण्ड का सविधान वया होगा श्रौर न हमारे काल का कोई व्यक्ति यह भविष्यवाणी कर सकता हैं कि श्राज से दो झताब्दियों पशचात्‌ सविधान का स्वरूप कसा होगा ापपप््णणण गए सक्षेप में ब्रिटिश संविधान ऐसे नियमों का एक समूह है जो राजनीतिक सस्थाग्रो के सगठन एव कार्यों का तथा उनके सचालन के सिद्धान्तों का वर्णन करते हैं । उसका स्वरूप ठीक वैसा ही है जैसा कि श्रन्य किसी देश के संविधान का । श्रन्तर केवल यही है कि श्रग्रेजी संविधान को कभी क्रमवद्ध सहितावद्ध श्रीद सुव्यवस्थित्त रूप मे नहीं रवखा गया है । शायद भविष्य में भी ऐसी कोई चेष्टा नहीं की जायेगी कि इन समस्त नियमों श्रौर सिद्धान्तो को मिला कर एक सुम्रधित श्रौर सुसगत सविधान का रूप दे दिया जाये । वस्तुत यह एक श्रसम्भव कार्य है क्योकि न केवल लोकाचारों (ए४०868) श्रौर परम्पराद्रों (७/8तए008) का क्षेत्र श्रत्यन्त व्यापक है प्रत्युतत उनमे से बहुत से इतने श्रनिष्चित हैं कि उन्हें लिपिवद्ध नहीं किया जा सकता । श्रपरच एक राजनीतिक प्राणी के नाते अ्रग्रेज़ ने ऐसी दासन-प्रणाली को कभी पसन्द नहीं किया है जो कुछ निश्चित सिद्धान्तो श्रौर कट्टर नियमों पर श्राघारित हो । वह व्यावहारिक यथार्थवादी श्रौर व्यापार-पटु होता है । देश-काल के अनुसार कायं करना उसके जीवन का निर्देशक सिद्धान्त है श्रौोर वह श्रवसरो को पहचानने की श्रपूर्व क्षमता रखता है । इस प्रकार वह किसी तक को नहीं जानता श्रौर श्रग्रेज़ी सचिधान में तक का श्रमाव है । इसका परिणाम जसा कि श्रॉग (088४) ने कहा है एक ऐसा सविघानिक सगठन है जिसमें एकरूपता नहीं है एक ऐंसी झासन-व्यवस्था है जो बहुत युक्तिह्दीन है । लेकिन इसका यह तातययें नही है कि श्रग्रेज़ी सविधान भानमती का पिटारा मात्र है। इगलेण्ड की शासन-प्रसाली के नियम श्रौर सिद्धान्त श्रग्नेजो के श्रनुभव से नि सूत हुए हैं श्रौर उनका सजगता से पालन तथा प्रयोग किया गया है । प्रिटिदा सविघान के सम्बन्ध सें पेन तथा डी टोकियावेली के विचार (ए16फ5 ए. ?िक्ाए6 घात 9०. प०0छुणारछ6 0. नशि6 . फाए्टाही एं०रनिन्पा0ए न 1 मिटिश संविधान के लिए इस विशेषण का प्रयोग श्री स्यर्ची (7 88716) ने श्रपनी पुस्तक वचीन विंक्टोरिया में किया है । ांग (088) ने अपनी कृति फणट्टा।5। (50४06 806 ?017105 में इसे उद्धृत किया है. । देखिए पु० घन |




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