दशरथ - नंदन श्रीराम | Dasharth Nandan Shriram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दशु्रथ-नंदन श्रीराम “. ७ दद्‌-दुशशन एक दिन प्रात काल नारद मुनि वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में पहुचे 1 वाह्मीकि ने नारदजी को प्रणाम किया और यथोचित आदर-सत्कार के वाद, हाथ जोडकर प्रदन किया, “है मुनिवर, आप सर्वज्ञ हैं। कृपया मुझे यह बताइये कि इस ससार के वीर पुरुषों में ऐसा कौन है, जो विद्या में, ज्ञान में और सदूगुणो में भी सर्वश्रेष्ठ हो * ऐसे पुरुष का नाम मैं जानना चाहता हु । मुझे कृतार्थ करे ।” मुनि नारद अपनी ज्ञान दृष्टि से समझ गये कि वाल्मीकि यह प्रइन क्यो कर रहे है । उन्होने उत्तर दिया, “इस ससार के वीर पुरुषों में सर्वे- सद्‌गुणसपतन्न पुरुप सुर्यवशी राम ही है, जो अयोध्या में राज कर रहे है । उन्हीको मैं पुरुपश्रेष्ठ मानता हू ।” इतना कहकर नारदजी ने वाल्मीकि को राम की सपूर्ण कथा सुनाई । ऋषि अतीव प्रसन्न हुए । नारदजी के चले जाने पर भी वह राम की अद्भुत कथा का स्मरण करते रहे । जव स्नान का समय हुआ तो वह नदी-तट पर गये । स्नान-योग्य स्थान कूढते हुए वह नदी-तट पर टहलने लगे । टहलते-टहलते उन्होने देखा कि कौंच पक्षी की एक जोडी पेड की डाल पर मस्त होकर किलोल कर रही हैं। ऋषि के देखते-ही-देखते व्याघ का वाण चला और उसमें से नर-पक्षी एकाएक आहत होकर पृथ्वी पर गिर पडा और तडपकर मर गया । उसकी प्रेयसी अपने प्रियतम की यह करुण दया देख, वियोग से दुखी हो विकाप करने लगी ।




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