हकाएके हिंदी | Hakayke Hindi

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Hakayke Hindi by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३५ ) नामक अंथ में इस विपय पर लिखा है कि “उदूं शायरी की इद्तिदा ( लारभ ) दुकन से हुई जो निहायत कटीम जमाने से ( अत्यंत प्राचीन काल से ) फिंकों तसच्चुफ का मरकजू ( पारलौकिरु चिंता सर दार्यानिफता का केंद्र ) दूं । इसलिये इच्तिदा से ही उसमें सूफियाना सयालात की लासेजिश ( मिराचट ) हो गई । जुनाचे इतुव शाह सल्तरूदलुस व जिल्ले अल्लाद ( जिनका उपनाम जिल्‍्ठे अल्लाह था ) जिसका जमाना दिट्ठी से चहुत मुकंदम ( चहुत पहले ) है कहता हु-- जहाँ है सीमिया का नकण उस थे फटे हैं श्यारिफों रच उसको तमशान्न 1| कतुचशाह के चाद आाल्‍मगीर के जमाने में उदू' शायरी ने उयादा तरक्की की तो मुस्तक्खि तार पर सूफियाना ल्टििचर की घुनियाद कायस हो गयी आर रदाजा मददमूद यहरी ने जो हजरत सुहम्मद वाकर छुदस सरा के मुराद थे तसब्युफ में एक सुस्तस्टि मसनवी ल्सी जिसका नास 'सन रुगन' रखा । चुनाव टस मसनदी की वजहें तसनीफ ( रचना के कारण ) के सुतस्लिझ लिखते हैं-- चालीस चरस यहीं थी. मस्ती । यूं योर यू. शादिदापरत्ती || दर बूंद न एफ श्मोल मोती । मोती न दर एक चीत (त्रुच) जोती । दिंदी तो जवान हे. मारी । कहत॑ न लग हमन का भारी ॥। दर चाल मं सारफत की वानी । सीता को न राम की कद्दानी ॥। यद जिसमें श्रच्छे घयान चाला | संसार के हाथ इफ रिसाला ॥| यार्न॑ं। दमन सच सिफ्त, है तू जात । क्यों जातफी फर सके सिफ्त चात ? निम्मन को तलाश है. जज. मनफ्री त्सें मन को लगन दी सन-लरनफी ॥। ' सूफियों को समाज में सपनी प्रतिष्टा थनाए रस्दने के लिये कितनी साद- धानी चरतनी परती थी इसका परिचय उक्त उद्धरणों ही विशिष्ट पक्षियों पर ध्यान देने मात्र से मिल लाता है ।




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