फैज और उनकी शायरी | Faiz aur Unki Shayri

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Faija  by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हे फ़्ज ः १७ वादी शायरी से सस्वोधित हुआ : श्रव भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजे, श्रौर भी दुख हैं जमाने में मोहब्वत के सिवा, राहते श्रौर भी हैं वस्ल की राहत के सिंवा, मुझसे पहली सी मोहव्वत मेरी महद्वूव न मांग ! श्रौर फिर स्वच्छत्दता से पूर्णतया मुक्त उसने राजनंतिक नज्मे भी लिखी श्रौर देश-प्रेंम को ठीक उसी वेदना श्रौर व्यथा के साथ व्यक्त किया जैसा कि प्रेयसी के प्रेम को किया था । मुम्ताज हुसैन (उदूं के एक श्रालोचक) के कथनाचुसार उसकी शायरी मे अगर एक परम्परा कंस (मजतू ) की है तो दूसरी मस्पूर की । 'फेज़' ने इन दोनों परम्पराश्रो को अपनी दायरी मे कुछ इस प्रकार सभो लिया है कि उसकी शायरी स्वय एक परम्परा वन गई है। वह जब भी महफिल में थ्राया तो एक छोटी सी पुस्तक, एक कितग्रा, गजल के कुछ शेर, कुछ यू'हो सा काव्य-ग्रभिभास श्रौर कुछ क्षमा-याचना की बाते लेकर श्राया, लेकिन जत्र भी श्रीर जैसे भी श्राया खूब या । दोस्त डुश्मनो ने सिर हिलाया, चर्चा हुई । कुछ लोगों ने यह कहकर पुस्तक पटक दी--इसमें रखा ही बया है, लेकिन है एक प्रसिद्ध ईसनी यली जिनका विश्वास था कि ज्ात्मा श्रौर परमात्मा एक ही है घोर उन्होंने 'घ्नल-ट्फ' ( सोज्द--सैं ही परमात्मा हैं) की घावाद उठाई थी । उत्त समय के मुसलमानों को उनका यह नारा घषार्मिक लगा भोर उन्होंने उन्हें फाँसी दे दी ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now