नक्षत्रोकी छायामें | Nakshatro Ki Chhaya Me
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.07 MB
कुल पष्ठ :
352
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्र; इस स्वेस्व-समपंणके बाद वह वावाके चरणॉपर नतमस्तक
हो गया ! ः
“पाला मंचिही” ( श्वहुत श्रच्छा' ) कहकर वावाने उसे दोनों
हार्थोंसे ऊपर उठा लिया !
हम लोगोंकी श्रोर मुड़कर बावा वोले : “देखा तुमने, इसने श्रपनी
सारी सम्पत्ति ही नहीं; सारा जीवन श्रौर सारा परिवार सर्वोदयको
दे डाला !??
भूमिदान वह एक दिन पहले ही कर चुका था !
र्भ न न
भूदान-यात्रामें--ऐसे एक-दो नही; श्रसंख्य पावन नक्षत्र हम रोज
श्रपनी भ्राँखों देखते हैं ।
सानवकी उदारता; मानवकी दयालुता; मानवकी पवित्रता प्रकट
करनेवाले ये प्रसंग किसे द्रवित नहीं करते ? किसे प्रसप्न नहीं करते ?
किसे ऊपर नही उठाते ?
न न न
गुरीवोंके लिए; दीन-दुःखियाँके लिए; शोपितां-पीड़ितोंके लिए
श्राशाका एकमात्र प्रकाशस्तम्म है--भूदान ।
नक्षत्रोंकी छायामें भूदान-यज्ञके ध्वयुं संत विनोवा भावेके झतुगमन में
उड़ीसा; हैदरावाद श्रीर ्रा्रमें मैंने २॥ मास विताये हैं । दो बारमें--
पहले सितम्बर ४५४. में, फिर फरवरी-माचे ५६ में ।
उन्हीं दिनोंके सस्मरणॉकी हैं ये ठेढ़ो-मेढी, श्राड़ी-सीघी रेखाएं !
सन् का पहला दिन 1 21 ब्२ नर,
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