मनोरंजन कहानिया | Manoranjan Kahaniya

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Manoranjan Kahaniya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के कौन शक्कर दिए देता है ? तुम इतना भी नहीं कर सकते कि जरा कण्ट्रोछ के दफ्तर तक चलें जाओ, भौर एक परमिट बनवा लाओ ।” रीछू बाबू ने सुसकरा कर कहा --“तो गुड़ कौन बुरा होता हे! शक्कर से भी अधिक मीठा और मजेदार --एक ढेला चबालो, तो मुंह और पेट मिठास से भर जाता हूं ।”' रीछी रानी ज़रा ज़ोर से बोली --“मे कव कहती हूँ कि' गुड़ बुरा होता है। परन्तु एक चीज खाते-खाते भी तबियत ऊब उठती हैं।. सुना है, सियार- चन्द कण्ट्रोल दफ्तर का बाबू है, और परमिट बनाता है--वही तुम्हारा पुराना मित्र। ज़रा चलें जाओ न उसके पास, वह तो तुम्हें देखते ही परमिट बना देगा ।” रीछू वाबू ने सर खुजाते-खुजाते कहा--'जाने को तो मे उसके पास अभी चला जाऊं , परन्तु तुम उसे जानती नहीं । वह अव्वल नम्बर का लालची और बदमाश है। बिना पैसा लिए कभी किसी का काम नहीं करता ।. मुझे देखते ही टालमटोल कर देगा । नतीजा यह होगा कि में उससे लड पड़ेँ गा, और बैठ-ठालें झगड़े में फंस जाऊंगा ।”' रीछी रानी बिगड़ कर बोली--“न गए, न आए, लगे यही बैठे-बैठे वहाने गढ़नें । भला वह टालमटोल कैसे कर देगा ?. आखिर सरकार उसे तनख्वाह किस बात की देती है ?. चाहे इस कान सुनो, चाहे उस कान--इस तरह की वातें बनाने से काम न चलेगा ।. यदि आज दकक्‍्कर का परमिट बना कर न लाए, तो में शाम को खाना-दाना भी न पकाऊँगी ।. समझे ? ” अब रीछ बाबू कया जवाब देते ? घुर-घुर करते चले, और कण्टोल के दफ्तर में पहुँचे । उनको देखते ही बावू सियारचन्द मुसकरा कर वोले-- आइए-आइए, रीछू बाबू ! खैरियत तो हे? कहिए कसे आना हुआ * वह कर्सी छे छीजिए न ।”” कोई रीछू बाबू कुर्सी पर बैठते-बैठतें वोले--“थोड़ी-सी शक्कर चाहिए । कोई तकलीफ न हो, तो एक परमिट वना दीजिये । ” वाबू सियारचन्द ने आँखों पर चदमा चढ़ाते-चढातें कहा--““अभी लीजिए! परन्तु यह तो बताइए कि आप को शक्कर खाने के लिए चाहिये या पीने कं लिये ३११ रीछू वावू ने पूछा--''क्या पीने के लिये भी कोई शक्कर मिर्ती है?”




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