दोहावली | Dohawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.59 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दोहावली वृष
ककााताकतवाव कवर्स कवा पता वतवातवकाहतवततााशावतवातवानातमातवातातततवेलवानकक दम्क:वं,
मुखरूपी दरवाजेकी देहलीपर रामनामरूपी [हवाके झोके अथवा
तेलकी कमीसे कभी न बुझनेवाला नित्य प्रकाशमय ] मणिदीप
रख दो (अर्थात् जीभके द्वारा अखण्डरूपसे श्रीराम-नामका जप
करता रह) ॥ ६॥।
हियें नियुंव नयनन्हि सगुन रसना राम सुनाम ।
मनहें पुरट संपुठ लसत तुलसी ललित ललाम ॥७॥
भावार्थ--हृदयमें निर्गुण ब्नह्मका ध्यान, नेत्नोके सामने प्रथम
तीन दोहोमे कथित सगुण स्वरूपकी सुन्दर झाँकी और जीभसे
सुन्दर राम-नामका जप करना । तुलसीदासजी कहते हैं कि यह ऐसा
है मानो सोनेकी सुन्दर डिबियामें मनोहर रत्न सुशोभित हो ।
श्रीगुसाइंजीके मतसे *राम' नाम निर्गुण ब्रह्म और सगुण भगवान्
दोनोसे बड़ा है--'मोरें मत बड़ नाम दुह तें' । नामकी इसी महिमाको
लक्ष्यमे रखकर यहाँ नामको रत्न कहा गया है तथा निर्गृण ब्रह्म
और सयुण भगवानुको उस असुल रत्नको सुरक्षित रखनेके लिये
सोनेका सम्पुट (डिबियाके नीचे-ऊपरके भाग) बताया गया है॥ ७॥।
सगुन ध्यान रुचि सरस नह निर्युन सन ते हरि ।
तुलसी सुमिरहू रासको नाम सजीवन सुरि ॥८॥
भावार्थ-सगुणरूपके ध्यानमे तो प्रीतियुक्त रुचि नही है
भर निर्गुणस्वरूप मनसे दूर है (यानी समझमें नहीं आता) ॥
तुलसीदासजी कहते है कि ऐसी दशामे रामनाम-स्मरणरूपी संजीवनी
दूटीका सदा सेवन करो ॥ ८ ॥।
एकु छत्ु एकु सुकुटमनि सब बरननि पर जोउ।
तुलसी रघुबर नाम के -बरन बिराजत दोउ ॥९॥
भावाथें--तुलसीदासजी कहते हैं-देखो, श्रीरघुनाथजीके नाम
विवि 2. न
बन कि वि दे वि व दे नल ववतवल
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