पाथेर पांचाली | Pather Panchali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.15 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज रू
जे
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गन्ना नननण
छुड
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वोली « “मीठी खीलें, तुम्हारे लिए दो पैसे की मीठी खीलें और
दो कदमें लाई हु । मुन्ने के लिए एक लकड़ी का गुट्डा लाई हू ।
बुढ़िया अव अच्छी तरह उठ बैठी । चीज़ों को हिला-इलाकर
देखने के बाद वोली . 'देखो, देखो, मेरी रानी बिटिया मेरे लिए क्या-
क्या लाई है । तुम रानी बनो, गरीव फूफी पर इतनी दया । देखू
ज़रा मुन्ते का काठ का युट्टा देखू ! वाह, बहुत ही सुन्दर है, कितने
पसे लिए ?”
इसी तरह कुछ देर तक बातचीत के बाद मुन्नी वोली : “फूफी,
तु क्या हो गया है ? तेरा वदन तो जल रहा है ?'
-उदिन-भर मारे-मारे फिरने से ऐसा हो गया है, इसलिए मैंने
कहा कि ज़रा पड़ रह ।
बच्ची होने पर भी दुर्गा फूफी के घूप में घूमने का कारण समझ
गई । उसने दुख और भुख से दुबली फूफी के शरीर पर स्नेह से हाथ
फेरा, फिर वोली : “तु जरूर घर भा जा फूफी, सन्ध्या समय कहानी
नहीं सुनने को मिलती है, कल ज़रूर आना, क्यो आएगी न *
दुढिया की वाछें खिल गई, वोली “क्या वहू ने तुमसे कुछ
कहा है ?”
राजी बोली : “फूफीजी, चाचीजी ने तो कुछ भी नहीं कहा ।
चाचीजी नहीं चाहती कि हम लोग यहा गाए । हम लोग कुछ कहे
तो, वे नाराज़ होती हैं, पर तुम लौटकर माओो, तो चाची जी कह-
कहाकर ठडी पड जाएगी ।
मुन्नी बोली 'फूफी, कल तू जरूर भाना । मा कुछ नहीं कहेंगी,
तो मैं अब घर जाती हू । अच्छा ? किसीसे न कहना, पर कल सवेरे
आ जाना ।
पवेरे उठकर वुढिया ने महसूस किया कि तवियत हलकी है ।
वि
ज़रा दिन घढते ही वह छोटी पोटली मे दो फटे कपडे और मंला
झगोछा वाधकर घर की तरफ चली । रास्ते में घोषी वैष्णव की वीवी
मिली तो बोली : “वहनजी, घर जा रही हो ? लगता है इतने दिनों '
में भाभीजी का क्रोघ कम हो गया है ।*
वुढिया की वाछें खिल गई, वोली : “कल सन्ध्या समय दुर्गा ;
रु
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