रूपमण्डन | Roopmandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका श७ प्रयोगात्मक अनुभव था । कहा जाता है कि कुंभलगढ का ढुरग सण्डन की ही देखरेख में बना था । कुंभलगढ़ से माठ्काओओ श्र चतुर्विशति वर्ग की कुछ विष्णु-प्रतिमाएं मिली हैं जो रूपमण्डन के आधार पर ही बनी प्रतीत होती है सम्भवतः ये मूर्तियों चून्नघार मण्डन के द्वारा ही बनायी गयी थीं । यह भी सम्भव है कि उसने अपनी प्रत्यक्ष देख-रेख में इन प्रतिमाश्ी को अन्य शिल्पियो के सत्योग से तैयार कराया दो | रुपमण्डन का परवती सूचघारों द्वारा व्यवहार. बहुत्त दिनो तक होता रहा । उननीसवीं शती में रूपमण्डन की टीकाए भी हुई। श्रीढहिं लक्ष्मी पुस्तकालय ( नाडियाद ) में रूपमण्डन की एक टीका है। इसमें रूपमण्डन के श्छोको का शुजराती में गद्यमय श्रनुवाद है । अनुवाद का एक उदाहरण यहाँ द्प्रब्य हैं व चैकुठमूर्ति । गरडासन करवा । अखवाहु करवा । रा खड्ग़ बाण चक्र जिमणी हार्थि करवा । श्रागलि जिमणी पुरुपाकार सिह करवा । थीजी पासा श्रीमूपा करवी ।.... ... कृप्णशंकर मूर्ति । कृष्णशंकर एएक अड्ड करवा । टष्षिणाड़े सुद्र । वामाझे कण । दष्षिणे जटाभार । वामे मुकुट । दक्षिण कुंडल । वामे मकर कुंडल । दक्षिण श्रभमाला त्रिशूल । वामें शद्ध चक्र करवा | चर जुस्यि साय न 1 रलचन्द झ्रग्रवाल शोध-पत्रिका भाग ८ ध्रंक ३ प्ृ० ७० थ्रादि झोर भाग 8 कि १ प्र० उन | रे. इशिडियन हिस्टारिकल क्वार्टरली शक 9 दे प्र० प्र |




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