अच्छी हिंदी | Achhi Hindi

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Achhi Hindi by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यू द७ फुटकर बातें लेख भीर छापे दोनों की कठिवाइयाँ बढाने के सिवा भोर कुछ नहीं है । यहीं इसे भापा के इस तरव का ध्यान रखना चांहिए कि दूसरों से जो दाब्द घ्ण किये जाते हैं, दे सदा स्यों-के-्व्यों नहीं रहते”; और वे तभी इसारे होते हैं, जब दम उन्हे अपने सोचे सें टाल छेते हैं । जिस भापा में शब्दों के रूप तक स्थिर न हों, जिसमें उनके दिउजे तक का रीक ठिकाना न हो, चह्द साथा कभी दूसरी उन्नत भाषाओं के सामने सिर ऊँचा करके खड़ी नहीं हो सकती । हमें सोचना चाहिए कि यदि अन्य सापा-भाषी हमारी ये चुटियाँ देखेंगे तो हमें कितना उपदार्य समझेगे । जिस प्रद्वार हमारी भाषा का स्वरूप निश्चित होना आवश्यक है, उसी प्रकार शब्दों के झप सी स्थिर होना जावइ्यक है । इस प्रकार का अनिद्चिय घोर भस्थिरता एक भोर तो दरें दूसरों के सामने दीन लिद्ध करती है लर दूसरी मोर हमारे वैयाकरणों नौर कोशकारों के मार्ग में कठिनाइयाँ उपस्थित करती है । सतः चढ नावइपरक हैं कि इम नपने लिए एक प्रगस्त प्रणाली निश्चित करें सार भाषा का स्वरूप विकृत होने से बचाये । विराम 'चिह्ठ सेखकों के लिए विराम-चिट्वों का ज्ञान भी कम आावदइयक नहीं है चिरास चिह्न भापा को स्पष्ट, खुगम आर सुबोध बनाने में सहायक होते हैं ये दमारे ४िए नई चीज हैं--पाश्चात्य साहित्य की देन हैं । विराम-चिह्ों. हमारे यहाँ तो केचछ पूर्ण विराम था | संस्कृत भाषा का का उपयोग स्वरूप भौर व्याकरण ही कुछ पुसा था कि उससे विदयेष दिराम चिह्ठों की लावइ्यकता नहीं होती थी | पर हिन्दी बा स्वरूप भौर गठन उससे वहुत कुछ सिन्न है; हसी लिए हिन्दी में अपेक्षा- झ्त नधिक विराम-चिद्ठीं की जावइपकता होती है। द्िन्दी सें अब भी कुछ ऐसे सजन दें जो संस्कृत के अच्छे ज्ञात होने और संस्कृत के प्रभाव में रहने के कारण ही हिन्दी में विराम-चिह्ठों की कोई मावदयकता नहीं समझते । परन्तु यदि विचारपूर्वक देखा जाय तो. हिन्दी में दिराम-चिह्ठों की मावश्यकता हैं और बहुत नावइयकता है । बहुत-से ऐसे स्थछ होते हैं _ जिनमें विराम-चिह्वां का ठीक-ठीक उपयोग न होने से अनेक म्रंकार के झम




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