विचार और अनुभूति | Vichar Aur Anubhuti

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Vichar Aur Anubhuti by डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साहित्य और समीक्षा साहित्य का जीवन से दुदरा सम्बन्ध है : एक क्रिया रूप में, दूसरा प्रति- क्रिया रूप में । क्रिया रूप मे वह जीवन की अभिव्यक्ति है, सुष्टि हे; प्रतिक्रिया रूप मे उसका निर्माता और पोषक है । जिस प्रकार एक सुपुत्र अपने पिता से जन्म और पोषण पाकर उसकी सेवा और रक्षा करता है, इसी प्रकार सत्साहित्य भी जीवन से प्राण और रक्त-मांस अ्रहण कर फिर उसको रस प्रदान करता है । जीवन की मूल भावना है आत्म-रचण, जिसे मनोवेज्ञानिका ने जीवमेच्छा फहा है। आत्म-रक्षण के उपायों मे सबसे श्रमुख उपाय झात्सासिव्यक्ति ही है । श्रतः क्रिया रूप में साहित्य आत्म-रक्षण अथवा जीवन का एक सार्थक प्रयत्न है । यहीं अभिव्यक्ति जब ज्ञान-राशि का सच्चित कोष बन जाती हैं तब प्रतिक्रिया रूप में मानव-जीवन का पोषण और निर्माण करती है । -एउपयोगिता का प्रश्न-- जसा मैंने अभी कहा, मनुष्य की समस्त क्रियाएँ आत्म-रक्षण के निमित्त होती हैं, प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष, सदी या ग़लत, उनका यही उद्देश्य होता है--झौर चास्तव में उनकी सार्थकता भी इसी से है । अतएव हसारे श्रयरनों का मूल्य आँकने की कसौटी यही है कि वे आत्म-रक्षण से कहाँ तक साथक होते हैं। यहाँ झात्म का अर्थ स्पष्ट कर देना आवश्यक हे । आत्म-रक्तण का वात्पय उस स्वार्थबुद्धि से नहीं है जो अपने में ही संकुचित रहती हें । सचसुच आत्म- रक्तण की परिधि मे समाज, देश, विश्व सभी कुछ श्रा जाता हैं । अपनी रचा के लिए व्यक्ति को अपने वातावरण और परिस्थिति से सामश्स्य स्थापित करना झनिवाप है। व्यापक रूप मे जो कुछ धर्स की परिधि में आता है वही सब झात्म- रच्ण की परिधि मे भी आ जाता हैं क्योकि घ्म उन सभी प्रयत्नो की समष्टि द,जो जीवन को घारण किए रहने के निमित्त होते दहे-ध्रियते यः सः धर्म । अतएव हमें प्रत्येक क्रिया या वस्तु का सूल्य परखने के लिए एक बात देखनी चाहिए ८ चद्द कहाँ तक धर्मानुकूल है, अर्थात्‌ कहाँ तक जीवन के जीने मे उपयोगी है ? जहाँ तक इस कसौटी का प्ररन है, हमारी धारणा हे कि इस विषय में आस्तिक-नास्तिक, त्रिश्वासी - वेज्ञानिक, प्रगतिवादी श्र प्रतिक्रियावादी किसी को भी मतमेद न होगा । परन्तु उपयोगिता की परीक्षा सब एक बद्म से ११




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