याज्ञवल्कय स्मृति | Yajnavalkya Smṛti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.16 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ब्ह्मचारिमकररणम् । ७
हितिं चास्याचरोन्नित्यमनोवाकायकमे नि ॥ ९७ ही
कृतज्ञादोहिमे घाविशचिकल्पानसूयकाः ।
झध्याप्याधमतः साधु शक्तापज्ञानवित्तदाः ॥ २८
गुरु बुलावे तो पढ़ने को जावे जो मिले सो गुरु को निवेदन
करे और मन वासी छौर कर्म से उसका दितसाघन करे ॥ ९७
जो उपकार मानें; बेर न करें; बुद्धिमान हों; शुचि हों) छनिन््दक
होवें और जो धन या ज्ञान दें ऐसे दी सब धर्म से पहने
योग्य हैं ॥ ९८ ॥।
दरडाजिनोपवीतानि मेखलाजव धारयेद् ।
न्राह्मणेषु चरेट्रेश्यमनिन्येष्वात्मदत्तये ॥ २६. ॥
ादिमप्यावसानेष्ु भवच्छव्दोपलक्षिता ।
चाहाणक्षत्रियविशां भेकष्यचंया यथाक्रमसु ॥ ३० ॥
घ्ह्मचारी पलाश शादि दर्ड; सगचमे धज्ञोपबीत और
मेखला धारण करे 'और अपनी- दत्ति के लिये शुद्ध न्नाझ्मणों के
घर सिक्षा मौँगे ॥ २४ ॥ ननाहझाण कत्रिय और वेश्य क्रम से शादि
मध्य छौर अन्त में भवद शब्द कहकर भिक्षा मौंगे+ ॥ ह० ॥)
कृंताग्निकार्यों भुज्ञींत चाग्यतो शुर्वतुज्ञया 1
. झापोशानक्रियापव सत्कत्यान्नमकुत्सयत्र ॥ ३२ ॥
.. न्ह्मचर्यें स्थितो नैकमनेमयादनापयदि । ...
: न्ाद्यणः काममंभीयाच्छ्ाद्धे जतमपीडयस् ॥ ३ ९.॥
झम्निहोत्र के बाद मौन दोकर आाचमन: करके भोनन करे
* ज़ाहाण जझचारी “भवति ! सिदषां देहि” ऐसा बोलकर भीख मंगि। -
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