भारतीय संपादक - शास्त्र | Bhartiye Sanpadan-shastr
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.16 MB
कुल पष्ठ :
76
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( शश )
विक्रम संवत् से पदले शिलालेखों में यह चिह्ठ बहुत कम दिखाई देते हैं--उनमें कहीं
कह्टीं सीपे आर टेढे दंड होते हैं । विक्रम की पांचवीं शताब्दी से यदद चिह्न नियमित
रूप से आते हैं--पाद के झंत पर एक दड और स्ट्रोक के झंत पर दो दंड । दक्तिया में
आठवीं शताब्दी तक के कई लेख और शासन इन के बिना मिलते हैं ।
संकेत--जिस शब्द को दुददराना दोता है, उसको जिखकर '२' का झंक लगा
दिया जाता है । हाशिए में प्रंथ का नाम संक्षिप्त रूप से दिया होता है। कहीं कहदीं अध्याय
आदि का नाम भी सक्तेप से मिलत। है। जैन तथा बौद्ध सूत्रो मे एक स्थान पर नगर,
उद्यान दि का बयान कर दिया दोता है । फिर जहा इन का वयुन देना हो दहां
इसे न देकर केवल * वण्णओ ” ( वयानमपू ) शब्द लिख दिया जाता है । इस से
पाठक को वहां पर उचित पाठ सम लेना पड़ता है |
पत्र-गणना--प्रतियों में पत्रों की संख्या दी होती है, पृष्ठों की नहीं ।
दक्षिण में पत्रे के प्रथम प्रष्ठ पर श्रौर श्न्यत्र दूसरे पर संख्या दी होती है । यह पत्रे
के हाशिए में होती है--बाई' श्रोर वाले में ऊपर श्रौर दाई ओर वाले में नीचे । कई
प्रतियो मे सख्या केवल एक ही स्थान पर द्ोती है ।
कुड चीन प्रतियो में पत्र-संख्या 'ंको में नददीं दी होती । अपितु
अक्षरों द्वारा सकेतित होती है । पत्र-गणना में अको को अक्तरों द्रा सकेतित
करने की कई रोतिया है” । उदाहरण --ऋगधेदी पिका, भाग , भूमिका प्रषप्ठ ३६
से उद्घूत ।
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१. डा० लच्चनया स्वरू संपादित ऋगयेदी पिका, भाग १, भूमिका प्रष्ट १८-३६,
डिस्क्रिप्टिव कैटॉलॉग श्ाफ़ दि. गर्प्मेट कोलेक्नूजा छाफ़ . मैनुस्क्रप्टस
डिपोजिटेड एट दि भंडारकर झो रियट न रिसर्च इन्स्टिच्यूट, भाग १७,२, परिशिष्ट दे।
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