ज्ञानामृत (भाषा वेदांत) | Gyanamrit Bhasha Vedant

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : ज्ञानामृत (भाषा वेदांत) - Gyanamrit Bhasha Vedant

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी श्रीरामाश्रम जी - Swami shree Ramashram Ji

Add Infomation AboutSwami shree Ramashram Ji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
5ब्जलि 3 चहिरड्ध साघन- दे भिन्न रहता है, और जब इन अवस्याओं खे अहंता ( मैं ) तथा ममता ( मेरी ) रूपी सम्बन्ध छोड़ देता है, अर्थात, ऐसा समक जाता है कि ये अवस्वयाएँं न मेरी हैं और न इनका में हूँ किन्सु इन अप्रस्थाओं का जानने वाला में घट द्प्टा की तंप्द इनले पिन्न है, तय घ्रह्मात्सा रूपो रुश्प में भ्रचेरा कर वद ब्रह्म स्चहप दो जाता है। अकाद उक्राद और मकार रूप प्रणत्र है तया जाप्रत, स्वप्त और खुडुषि, ये तीन अवस्थाएं प्रसव स्वरूप हैं । जिस प्रकार शालिंप्राम तथा नर्मदेशचर की सूर्ति को विष्णु तथा शिचर का प्रतीक होने से विष्णु तया शिव्र कहते हैं, उसी प्रकाप ब्रह्म का प्रतीक होने से प्रणव को भी श्रुति रुछतियों में घ्रह्म कहा गया है । यथा:-- 'सोसित्पेद्रनिदं सर्वे तस्योपब्या खनसू 1... भूत भवद्भविष्यवदिति सवसोकार स्व ॥ यच्चा'न्य तिचका लातीतं तद्प्वॉक्दार स्व 1 रो सित्येकाक्षरं ज्रह्मर । ' यणव: सब 'वेदेप” ॥ उर्थात्‌ उँ? जो यह पक अंधर है, सोदी यह सब जंग है उस ऊँ? कार की व्याख्या करता हूँ । भूत, मचिष्य ओर चत- :मान, जो ये तीन काल हैं, सो सब ऊँ? कार ही हैं, और जो इस ल्लीन काल से परे अर्थात्‌ जिसमें ये तीन काल कल्पिंत हैं,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now