योगवाशिष्ठ वैराग्य प्रकरण [मुमुक्षु] | Yogvashishth Vairagya Prakaran [Mumukshu]

Yogvashishth Vairagya Prakaran [Mumukshu] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ % चेराग्य प्रकरण % १७ कि दल लि नव िरीीपत लीध्तरी करना जेल अल और एथ्वीछोक तथा पाताल को प्रकाशित करता है, और भीतर बाहर आत्म तत्व से पूर्ण ऐसा जो अनु भवात्मक मेरी आत्मा है सो उस सर्वात्मा को नमस्कार है। राजन्‌ ! मेंने जो इस छात्र का आरम्भ किया है, सो उसका विपय क्या है, ओर प्रयोजनं' तथा सम्वन्ध क्या है, एवं भधिकारी कौन है ? सो भी श्रवण कीजिये । जो सच्चिदानन्द्‌ रूप अचित्य चिन्मात्र आत्मा को घ्रह्मभिन्न जनावता है, सो विषय है, ओर परमानन्द की प्राप्ति तथा अनात्म अभिमान जनित दुःख की निद्वत्ति है सो यह इसमें प्रयोजन है । घ्रह्मवियया और जो उपाय के द्वारा आत्मपद्‌ की प्रतिपादक हैं सो मोक्ष है, ओर जिसको यह निश्चय है, कि मैं अद्वैत उस ब्रह्म अनात्म देह के साथ बैँधा हुआ हूँ सो उससे किसी प्रकार छुटकारा पारऊँ वह न अतिज्ञानवान है और न मुखें हैं, ऐसा जो विकवृत आत्मा, है वही यहाँ अधिकारी है .। यह शाख्र मोक्ष का उपाय है, और वही :परमाः 14




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