दयानन्द का सत्य स्वरूप | Dayanand Ka Saty Swarup
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.77 MB
कुल पष्ठ :
82
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(रुप
नहीं हुझा,पर रूदा मीजी ने झपने झलुभव के लिये-शरीर विशानकों
समभाने के लिये मुर्दे को चीरा तो उन्होंने बड़ा पाए किया ।
लाखों मेथिल घ्ाह्मण मछली मार मार खा. जाते हैं चह
नीच कर्म नहीं, लाखों ब्राह्मण चकरे सेड़ी को मार मार खाल *
खीचते हैं घइ नीच कर्म नहीं है क्यों कि थे सच सतातनधर्मी
हैं । पर स्वामी ने सु्दे' को चीरा तो वह नीच फर्म हो गया ।
इसीसे तो कद्दा जाता है फि सनातनियों की बुद्धि पोपों के
प्रभाव से इतनी भ्रष्ट दो गई है कि बेचा को तर्क से कामे
दी लेने नहीं देती । झचतो चेत जाश्नो श्ौर दष भाव त्याग दो।
इसके शागे श्रापने जो स्वप्न का दाल लिखा हे चदद गप्प
है। किसी भी जीवन चरित्र दें नहीं पाया जाता जब जीवन
चरित्र हो में नहीं तो उत्तर काहे का ।
श्याये झांपने सन, १०८५ के छापे. हुये. सत्याध
प्रकाश का हृदाला देकर लिखा दे--पृष्ठ ४४ में मांसा-
दिक से दोम करना लिखा है । पृष्ठ १४४ में मांस के पिरछ देने
मे कु पाप नदीं । पृ० १४८ में गाय को गघी के समान लिखा
है । उसको घास जल भी डुग्घादि प्रयोजन के चास्ते देने
अन्यथा नहीं । पृष्ठ १७१ यज्ञ के घास्वे जो पशुर्था की 'दिसा है
सो बिधिपूर्वक दनन है । ,पृष्ठ ०२ कोई भो माँसन ,खाय तो
जाववर पद्षो मत्स्य श्र जलजन्वु जितने हैं उनसे शत सदस्र
शुने हो आय फिर मनुष्यों को मारने लगें श्र खेती में घान्य
दी न दोने पाये फिर मनुष्यों की श्राज्ीविका नए दोने से सब
User Reviews
No Reviews | Add Yours...